Part 2
*जाति के बीमार समाज विज्ञान से मुक्ति*
अम्बेडकरवाद - दलितवाद एक विचार का सूक्ष्म खांचा है जिससे प्रभावित हो कर अनुसूचित जाति/जनजाति और अति पिछड़ी जातियां अपने पुस्तैनी व्यवसाय को हीन दृष्टि से देखने लगता है ऒैर इसमें रोजगार, आर्थिक उन्नति के अवसर खो देता है। यहि कारण है कि दलित, अम्बेडकरवाद को एक बीमार समाज विज्ञान कहने कि जहमत ऊठा पाया. ....
आप दलित साहित्य या अम्बेडकर साहित्य पढ़ें, सारे तथ्यों पर गहराई से अध्ययन करे तो एक ही बात निकल कर आती है कि आप कि दुर्गति का कारण आप का गंदा व्यवसायिक पेशा रहा है....
कहीं कोई जिक्र नहीं है कि आप के व्यवसायिक पेशा, व्यवसाय आज बड़े- बड़े औद्योगिक रुप ले लिया है ऒैर इसका सलाना का कुल बिक्री करोड़ों में है ऒैर इस के मालिक वही सवर्ण समाज के लोग हैं जो इस व्यवसाय को लेकर आप पर व्यंग्यात्मक टिपण्णी करते थे ॥
अपने पुश्तैनी व्यवसाय को लेकर आप ने कभी आर्थिक अध्ययन नहीं किया ऒैर ना दलितवाद अर्थात अम्बेडकरवाद आप को बताया ॥
💫: अपने कभी समझने कि कोशिश नहीं कि --
कोई रोजगार छोटा- बड़ा नहीं होता है. ...
छोटा- बड़ा हमारी सोच होती है. .......
हम अपने लगन, मेहनत के दम पर हर क्षेत्र में कामयाब हो सकते हैं. .........
सोचें, अगर -- चमार अगर चमरे के रोजगार को छोटा, घृणास्पद नहीं मानता तो -- बाटा, रिबोक, श्रेीलेदर. जैसे ब्राण्ड के मालिक होते. ...।
नाई अपने व्यवसाय से प्यार करता तो आज सारे ब्यूटी प्रोडक्ट के मालिक होते।
तेली - अगर अपने तेल के रोजगार को हीन दृष्टि से नहीं देखता तो सारे तेल कम्पनी के मालिक तेली होते. . जैनी मारवाड़ी नहीं. ..
उसी प्रकार, अगर हम धोबी पेशा को घृणास्पद नहीं मानते ऒैर इस प्रोफेशन से प्यार करते तो सारे कलर(रंग) कि फैक्ट्री, सर्फ, सोडा, साबुन की जितनी भी फैक्ट्रियाँ ऒैर कम्पनियां हैं, हमारी होती ।
....... इसलिये जाति के सांचे से बाहर निकल कर पुश्तैनी व्यवसाय को व्यापार कि दृष्टि से समग्रता में देखने का प्रयास करें. ...
🌹किशन कमार लाल🌹
Mob no - 8918519132