Part - 1
*दलितवाद - अम्बेडकरवाद एक बीमार समाज विज्ञान*
कोईरी-कुर्मी , लोहार, सोनार, तेली, पासी, बढ़ई , धोबी,नाई, खटिक , चमार,भंगी, ग्वाला, गङेरिया-गौरया , कायस्थ एक पेशा था जाति नहीं !
हर समय-काल में पेशेगत-वर्गीय विशेष पर टिपण्णी स्वाभविक थी । हरेक व्यवसाय का अपना एक चरित्र भी होता है, और उससे जुड़ी टिपण्णी-व्यंग्य भी होती है ।
आज भी दारोगा, चपरासी , डाक्टर , नेता , नौकरशाही पर अपमानजनक पेशेगत टिपण्णी व्यंग्य उपलब्ध है ।
आपके मूल जाति-ब्लड लाइन पर कोई टिपण्णी नहीं कर रहा था इसलिए बहुत ज्यादा अपमान की पीड़ा से व्यथित होने की आवश्यकता नहीं थी ।
आपने यदि अपमान की पीड़ा से समाजशास्त्र पढ़ना शुरू कर दिया तो समाजिक विज्ञान फिर बीमार विज्ञान बन जाता है ।
"दलितवाद-अम्बेडकरवाद" उसी बीमार विज्ञान का नाम है ।
आपको सिर्फ दो बातें गौर करनी है ।
1) हर पेशे-वर्ग में नस्लीय विविधता कितनी है ? क्या अपमानजनक टिपण्णी की वजह नस्लीय समझ थी या वर्गीय ?
2) दूसरी यदि हम पेशेगत समाजिक संरचना को अपमानित कर रहे थे तो हम कहीं ना कहीं , भारत को ही तो कमजोर कर रहे थे और किया भी हमने ।
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