साज श्रृगार रुप देख कर रानी कि तरह, ,, पर सर पे पोटरी (गठरी) विस्मय मे डाल देती है ॥ जैसे कोई रानी अपने प्रजा जनो के लिये महलो को छोड उनकि सेवा के लिये जा रहि हो ॥ जैसे बता रहा हो प्रजा कि सेवा सर्वोतम सेवा ॥ एक श्रवण संस्कृती मे ना कोई राजा रानी, ,, सभी समान ॥ आज इस कुल को क्या बना दिया गया, ,,, खुद मे झाक कर देखे क्या थे क्या बन गये ॥ पर कुछ इस संस्कृती के विरोधी भेडिये आप को क्या बना दिये, ,,,? ??🌹सम्राट अशोक द्वारा बनाये गये रज्जुक संघो के कार्य निष्टा पुर्वक पुरी इमानदारी से रजक(धोबी) आज तक कर रहे है ॥देखे अशोक ने कलिंग में कहा , “सारी प्रजा मेरी संतान है, जिस प्रकार मैं अपनी संतान ऐहिक और कल्याण की कामना करता हूँ उसी प्रकार, अपनी प्रजा के ऐहिक और पारलौकिक कल्याण और सुख के लिए भी। जैसे एक माँ एक शिशु को एक कुशल धाय को सौंपकर निश्चिंत हो जाती है कि कुशल धाय संतान का पालन-पोषण करने में समर्थ है, उसी प्रकार मैंने भी अपनी प्रजा के सुख और कल्याण के लिए राजुकों की नियुक्ति की है ॥ *रजक(धोबी) आज भी सारे प्रजा को ना जाती ना धर्म देख कर अपने संतान कि तरह सेवा कर रहै ॥*🙏🏻....... किशन लाल🌹
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