Monday, 16 May 2016

शंकर धोबी (क्रांतिकारी)

रजक गॊरव(क्रांतिकारी)

           🌹 शंकर धोबी🌹

गुजरात प्रान्त के सन् 1942 के "अंग्रेजो भारत छोड़ो' आन्दोलन में अपनी छाती पर दमनकारी पुलिस दल की गोली झेलकर शहीद होने वाले 13 वर्षीय किशोर शहीद थे शंकर धोबी । सन् 42 के आन्दोलन काल में पढ़ाई-लिखाई छोड़कर ये भी "करो या मरो' आन्दोलन में बड़े जोश के साथ भाग ले रहे थे। उसी बीच एक दिन अगस्त महीने में पुलिस दल ने इन्हें घेरे में लेकर जब इन पर गोली चलाई तो उस दिन ये अपने ही ग्राम डाकोर में घायल होकर गिर गए और शहीद हो गए। ये अभी छात्र थे और इनके यहां कपड़े धोने (धोबी का) का काम होता था। ये डाकोर, जिला-कैरा के निवासी श्री डाह्रा धोबी के पुत्र थे। 1928 में जन्मे थे और सन् 1942 के अगस्त महीने में देश की स्वतंत्रता के लिए सक्रिय रहते हुए बलिदान हो गए।

🙏🏻जय संत गाडगे🙏🏻

किशन कुमार लाल


Sunday, 15 May 2016

सोमा धोबीन

रजक देवी सोमा धोबीन

मौनी अमावस्या

अनुयायी हिंदू
उद्देश्य  इस व्रत को मौन धारण करके समापन करने वाले को मुनि पद की प्राप्ति होती है
तिथि माघ मास की अमावस्या
उत्सव  इस दिन मौन रहकर यमुना या गंगा स्नान करना चाहिए।
अन्य जानकारी  इन दिनों में पृथ्वी के किसी-न-किसी भाग में सूर्य या चंद्रमा को ग्रहण हो सकता है।
माघ मास की अमावस्या को मौनी अमावस्या कहते हैं। इस दिन मौन रहना चाहिए। मुनि शब्द से ही मौनी की उत्पत्ति हुई है। इसलिए इस व्रत को मौन धारण करके समापन करने वाले को मुनि पद की प्राप्ति होती है। इस दिन मौन रहकर यमुना या गंगा स्नान करना चाहिए। यदि यह अमावस्या सोमवार के दिन हो तो इसका महत्त्व और भी अधिक बढ़ जाता है। माघ मास के स्नान का सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण पर्व अमावस्या ही है। माघ मास की अमावस्या और पूर्णिमा दोनों ही तिथियां पर्व हैं। इन दिनों में पृथ्वी के किसी-न-किसी भाग में सूर्य या चंद्रमा को ग्रहण हो सकता है। ऐसा विचार कर धर्मज्ञ-मनुष्य प्रत्येक अमावस्या और पूर्णिमा को स्नान दानादि पुण्य कर्म किया करते हैं।
मौनी अमावस्या की कथा

कांचीपुरी में देवस्वामी नामक एक ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी का नाम धनवती था। उनके सात पुत्र तथा एक पुत्री थी। पुत्री का नाम गुणवती था। ब्राह्मण ने सातों पुत्रों को विवाह करके बेटी के लिए वर खोजने अपने सबसे बड़े पुत्र को भेजा। उसी दौरान किसी पण्डित ने पुत्री की जन्मकुण्डली देखी और बताया-'सप्तपदी होते-होते यह कन्या विधवा हो जाएगी।' तब उस ब्राह्मण ने पण्डित से पूछा- 'पुत्री के इस वैधव्य दोष का निवारण कैसे होगा?' पंडित ने बताया-' सोमा का पूजन करने से वैधव्य दोष दूर होगा।' फिर सोमा का परिचय देते हुए उसने बताया-' वह एक धोबिन है। उसका निवास स्थान सिंहल द्वीप है। उसे जैसे-तैसे प्रसन्न करो और गुणवती के विवाह से पूर्व उसे यहाँ बुला लो।' तब देवस्वामी का सबसे छोटा लड़का बहन को अपने साथ लेकर सिंहल द्वीप जाने के लिए सागर तट पर चला गया। सागर पार करने की चिंता में दोनों एक वृक्ष की छाया में बैठ गए। उस पेड़ पर एक घोंसले में गिद्ध का परिवार रहता था। उस समय घोंसले में सिर्फ़ गिद्ध के बच्चे थे। गिद्ध के बच्चे भाई-बहन के क्रिया-कलापों को देख रहे थे। सायंकाल के समय उन बच्चों (गिद्ध के बच्चों) की मां आई तो उन्होंने भोजन नहीं किया। वे मां से बोले- 'नीचे दो प्राणी सुबह से भूखे-प्यासे बैठे हैं। जब तक वे कुछ नहीं खा लेते, तब तक हम भी कुछ नहीं खाएंगे।' तब दया और ममता के वशीभूत गिद्ध माता उनके पास आई और बोली- 'मैंने आपकी इच्छाओं को जान लिया है। इस वन में जो भी फल-फूल कंद-मूल मिलेगा, मैं ले आती हूं। आप भोजन कर लीजिए। मैं प्रात:काल आपको सागर पार कराकर सिंहल द्वीप की सीमा के पास पहुंचा दूंगी।' और वे दोनों भाई-बहन माता की सहायता से सोमा के यहाँ जा पहुंचे। वे नित्य प्रात: उठकर सोमा का घर झाड़कर लीप देते थे।
एक दिन सोमा ने अपनी बहुओं से पूछा-'हमारे घर कौन बुहारता है, कौन लीपता-पोतता है?' सबने कहा-'हमारे सिवाय और कौन बाहर से इस काम को करने आएगा?' किंतु सोमा को उनकी बातों पर विश्वास नहीं हुआ। एक दिन उसने रहस्य जानना चाहा। वह सारी रात जागी और सबकुछ प्रत्यक्ष देखकर जान गई। सोमा का उन बहन-भाई से वार्तालाप हुआ। भाई ने सोमा को बहन संबंधी सारी बात बता दी। सोमा ने उनकी श्रम-साधना तथा सेवा से प्रसन्न होकर उचित समय पर उनके घर पहुंचने का वचन देकर कन्या के वैधव्य दोष निवारण का आश्वासन दे दिया। मगर भाई ने उससे अपने साथ चलने का आग्रह किया। आग्रह करने पर सोमा उनके साथ चल दी। चलते समय सोमा ने बहुओं से कहा-'मेरी अनुपस्थिति में यदि किसी का देहान्त हो जाए तो उसके शरीर को नष्ट मत करना। मेरा इन्तजार करना।' और फिर सोमा बहन-भाई के साथ कांचीपुरी पहुंच गई। दूसरे दिन गुणवती के विवाह का कार्यक्रम तय हो गया। सप्तपदी होते ही उसका पति मर गया। सोमा ने तुरन्त अपने संचित पुण्यों का फल गुणवती को प्रदान कर दिया। तुरन्त ही उसका पति जीवित हो उठा। सोमा उन्हें आशीर्वाद देकर अपने घर चली गई। उधर गुणवती को पुण्य-फल देने से सोमा के पुत्र, जामाता तथा पति की मृत्यु हो गई। सोमा ने पुण्य फल संचित करने के लिए मार्ग में अश्वत्थ (पीपल) वृक्ष की छाया में विष्णुजी का पूजन करके 108 परिक्रमाएं कीं। इसके पूर्ण होने पर उसके परिवार के मृतक जन जीवित हो उठे। निष्काम भाव से सेवा का फल मधुर होता है, इस व्रत का यही लक्ष्य है।

जय संत गाडगे 😃
किशन कुमार लाल


रजक राजनिति part-2

रजक समाज का बेडा गर्त क्यो

रजक विद्यार्थियों के द्वारा राजनीति मे हिस्सेदारी को ले कर समाज के प्रबुद्ध एवं वरिष्ठ लोगों द्वारा प्रश्न उठाये जाते रहे है। उनका तर्क रहा है कि विद्यार्थी जिनका कि मूल उद्देश्य विद्या अध्यन करना है, यदि राजनीति मे सक्रीय रूप से भाग लेते है, तो क्या वे अपने मूल उद्देश्य से भटक नहीं जायेंगे ? ओर क्या यह कार्य उनके भविष्य निर्माण मे बाधक नहीं होगा ?

यह सही है कि विद्यार्थियों का मुख्य उद्देश्य पढाई करना है। उन्हें अपना पुरा ध्यान उस ओर लगाना चाहिऐ, लेकिन सामाजिक एवम राष्ट्रिय परिस्तिथियों का ज्ञान ओर उसके सुधार के उपाय सोचने की योग्यता पैदा करना भी शिक्षा मे शामिल होना चाहिऐ, ताकी वे राष्ट्रिय एवं सामाजिक समस्याओं के समाधान मे अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर सके। क्यूंकि ऐसी शिक्षा व्यवस्था जो विद्यार्थियों को देश की संरचना निमार्ण मे कोई भागीदारी नहीं देती- उन्हें व्यवहारिक रूप से अकर्मण्य बनाती है। उसे हम पूर्णत: सार्थक नहीं कह सकते है। वैसे भी एक प्रजातांत्रिक राष्ट्र मे प्रत्येक नागरिक प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से राजनीति तथा राष्ट्रिय कार्यप्रणाली मेँ भागीदारी निभाता है ओर ऐसे मेँ राजीव गांधी द्वारा प्रदत्त 18 वर्ष के व्यस्क मताधिकार से छात्रों की भागीदारी तो स्वत: ही स्पष्ट हो जाती है।
                 अत: उपरोक्त परिस्तिथियों मे रजक राष्ट्रिय नेतृत्व एवं रजक समाज के प्रबुद्ध एवं वरिष्ट लोगो का दायित्व है की वे छात्रों मे, जिन्हे कल देश की बागडोर हर स्तर पर अपने हाथों मे लेनी है- नेतृत्व क्षमता पैदा करें, उन्हें उनके राष्ट्रिय कर्त्तव्यों के प्रति जागरूक बनायें, उन्हें सांप्रदायिक व प्रथक्तावादी ताकतों के विरुद्ध एकजुट करें, उन्हें लोकतांत्रिक कार्यप्रणाली से अवगत कराएँ ओर साथ ही राष्ट्रिय समस्याओं के समाधान मे उनकी भागीदारी सुनिश्चित करें। यदि वे ऐसा नहीं करते है तो वे ना सिर्फ राष्ट्र ऒर रजक समाह के साथ विश्वासघात करेंगे, बल्कि यह देश की भावी पीढी के साथ भी घोर अन्याय होगा। क्योंकी ऐसा ना करने पर हि रजक समाज मे एक ऐसी नेतृत्व शून्यता पैदा हुई जो रजक समाज को अनजाने अंधकारमय भविष्य की ओर धकेल देगी।

इसके अतिरिक्त छात्रों को भी चाहिऐ की वे पढे, जरुर पढे, परंतु साथ ही राष्ट्रिय गतिविधियों मे भी सक्रीय भागीदारी निभाए ओर अधिकार तथा जिम्मेदारियों को समझते हुये राष्ट्रिय परिपेक्ष्य मे जब, जहाँ, जितनी आवश्यकता हो अपना संपूर्ण योगदान दे। ऐसा करने पर ही वो रजक समाज को उन्नति के चरमोत्कर्ष ले जा सकने मे सफल हो सकेंगे तथा उस राष्ट्र का निर्माण कर सकेंगे जो बाबा संत गाडगे के सपनो का राष्ट्र था।

NOTE :- IAS , IPS अगर तुलसि का पॊधा है तो  एक नेता बट ब्रक्ष है

जय संत गाडगे

             किशन लाल


रजक राजनिति part-1

रजक एक जुटता कि राजनिति

एक समय था जब राज्य सत्ता प्राप्ति के लिए सिर काटने पड़ते थे और कटवाने पड़ते थे । बिना हिंसा किऎ न तो राज्य सत्ता मिलता था और ना ही सुरक्षित रहता था । पर आज जमाना बदल गया है आज सत्ता प्राप्ति के लिए सिर कटवाने नहीं मात्र गिनवाने पड़ते है ।यही कारण है कि जब सिर कटवाने पर सत्ता मिला करती थी उस वक्त सत्ता से दूर रहने वाली रजक जातियां जो सिर कटवाकर सत्ता हासिल करने के बजाय घर में बैठकर या सत्ताधारियों की सेवा करना सत्ता प्राप्ति से ज्यादा महत्वपूर्ण समझती थी । वे आज सिर गिनवाकर भी सत्ता में भागीदार नहि बन पाई है । क्योंकि लोकतंत्र में सिर गिनवाने के महत्व को उन्होंने बखूबी समझ नहि पाये है, पर सिर कटवाकर एवं छल कटप निति कर सत्ता हासिल करने वाली जातिया "स्वर्ण" लोकतांत्रिक प्रणाली में भि सिर गिनवाकर आसानी से सत्ता प्राप्त करने जैसे आसान मर्म को समझ  पाई और आज बड़ी आसानी से मिलने वाली सत्ता पे काविज है ।

यदि आपको मेरी इस बात पर कि -"सत्ता सिर गिनवाने पर मिलती है" भरोसा ना हो तो निम्न उदाहरण आपके सामने है जिन्हें पढकर आपको भी मेरी यह बात सही लगेगी कि -आजकल सत्ता सिर्फ गिनवाने यानी लामबंद होकर वोट देने पर ही हासिल होती है-
1- आज जो स्वर्ण जाति देश के हर क्षेत्र मे सत्ता  मे बहुतायत   मात्रा  मे मोजुद है उससे देश का हर वर्ग दुखी है पर इसे हटाने का कार्य तो सरकार सोच भी नहि सकती है । चूँकि स्वर्ण लामबंद होकर उसी राजनैतिक दल के पक्ष में सिर गिनवाते है मतलब वोट देते है जो राजनैतिक दल उनके जातिय हितों की रक्षा करें । अब जो दल या सरकार ये स्वर्ण अघिकार बंद करने की बात सोचते है तो डर जाते कि ऐसा करने से अगडि (स्वर्ण) जातिया नाराज हो जायेंगे और हमें तो वोट देंगे नहीं बदले में विपक्ष को वोट दे देंगे इससे वे सत्ता से बेदखल हो जायेंगे । अब ऐसा रिस्क कौन ले ?
मतलब साफ जाहिर है स्वर्णो ने लोकतंत्र में सिर गिनवाने वाली महिमा को बड़ी अच्छी तरह समझा और उसका फायदा उठा राज कर रहे है । आज हर सरकारी नौकरियों में  छल कपट निति के तहत उनके लिए तो दरवाजे खुलें ही है चाहे उनमे योग्यता हो या ना हों । और यही नहीं कुछ स्वघोषित स्वर्ण नेता चाहे किसी दल की सरकार हो उसमे मंत्री पद पा ही जाते है महज इस योग्यता पर कि वे एकजुट है|

2-अब मुसलमानों का उदाहरण ले लीजिए । वे भी लामबंद होकर किसी एक के पक्ष में चुनावों में सिर गिनवाते है और जिस दल को उनके वोट चाहिए वो सरकार बनने के बाद उनके तुष्टिकरण करने का पुरा ध्यान रखता है । इसका उदाहरण आप आजादी के बाद से ही देख रहे है कि किस तरह कांग्रेस सरकार इनका तुष्टीकरण करती आ रही है यही नहीं कई मामले ऐसे भी आये है कि कांग्रेस ने इस वोट बैंक की खातिर देशहित को भी परे किया है । इनके तुष्टीकरण की खातिर देश के कानून तक बदलें गए है । ताजा उदाहरण आप मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी का देख सकते है कि किस तरह वह मुस्लिम वोट बैंक के लिए उनका तुष्टीकरण करने में लगी है ।
कहने का मतलब साफ है मुस्लमान भारत में अल्पसंख्यक है फिर भी वे सरकारों व राजनैतिक दलों से जो चाहे पा लेते है, किसी भी सरकार को झुकाने का माद्दा रखते है वह भी सिर्फ सिर गिनवाने की कला के पीछे ।
मतलब साफ़ है मुसलमानों ने भी लोकतंत्र की इस सिर गिनवाने वाली खास बात का मर्म समझ लिया और वे कम होने के बावजूद वो सब पा जाते है, जो वे चाहते है कोई भी दल उनकी उपेक्षा नहीं कर सकता ।

3- जाटों ने भी लोकतंत्र की इस सिर गिनवाने वाली बात को बड़ी बखूबी समझा और चुनावों में लामबंद हो वोट डालने शुरू किये उनके थोक वोट देखकर लगभग सभी राजनैतिक दलों ने चुनावों में जाट प्रत्याशी उतारने शुरू किये और वे अपने स्वजातीय द्वारा लामबंद होकर दिए वोटों से जीत कर सत्ता के भागीदार बने । यही नहीं राजस्थान के जाटों ने अपनी इसी लामबंदी का फायदा आरक्षण की सुविधा पाने में किया । उनके वोट बैंक को देखते हुए सरकार ने उनकी आरक्षण में शामिल करने की मांग मान ली । अब राजस्थान में कोई सरकारी कार्यालय ऐसा नहीं जहाँ जाट कर्मचारी नहीं ।
और जाटों ने ये सब पाया लोकतंत्र में सत्ता के लिए सिर गिनवाने वाले आसान उपाय को अपनाकर ।तो रजक भाइयो उपरोक्त उदाहरण पढकर जो आपके सामने प्रत्यक्ष भी है आपको भी लोकतंत्र में सिर गिनवाकर सत्ता हासिल करने की महिमा के बारे में समझ आया होगा । अब जब सिर्फ सिर गिनवाने से सत्ता हासिल हो सकती है तो सिर कटवाने की बातें करने की क्या जरुरत ?

लोकतंत्र के इस मर्म को समझिए और लामबंद हो एक जबरदस्त वोट बैंक में अपने आपको तब्दील कर दीजिए कि सारे राजनैतिक दल आपके आगे पीछे हाथ जोड़कर भागे फिरें और आप उनसे देशहित में जो करवाना हो वो अपनी मर्जी से करवाएं । पर इसके लिए जरुरी है  "रजक एकता "। हम सब एक होकर, अपनी एकता के बल पर फिर अपना खोया गौरव पा सकते है । हमें यह एकता स्व-कल्याण और देशहित को ध्यान में रखकर ही लिखा है ॥

जय संत गाडगे
         किशन लाल



Posted via Blogaway