Sunday, 15 May 2016

रजक राजनिति part-1

रजक एक जुटता कि राजनिति

एक समय था जब राज्य सत्ता प्राप्ति के लिए सिर काटने पड़ते थे और कटवाने पड़ते थे । बिना हिंसा किऎ न तो राज्य सत्ता मिलता था और ना ही सुरक्षित रहता था । पर आज जमाना बदल गया है आज सत्ता प्राप्ति के लिए सिर कटवाने नहीं मात्र गिनवाने पड़ते है ।यही कारण है कि जब सिर कटवाने पर सत्ता मिला करती थी उस वक्त सत्ता से दूर रहने वाली रजक जातियां जो सिर कटवाकर सत्ता हासिल करने के बजाय घर में बैठकर या सत्ताधारियों की सेवा करना सत्ता प्राप्ति से ज्यादा महत्वपूर्ण समझती थी । वे आज सिर गिनवाकर भी सत्ता में भागीदार नहि बन पाई है । क्योंकि लोकतंत्र में सिर गिनवाने के महत्व को उन्होंने बखूबी समझ नहि पाये है, पर सिर कटवाकर एवं छल कटप निति कर सत्ता हासिल करने वाली जातिया "स्वर्ण" लोकतांत्रिक प्रणाली में भि सिर गिनवाकर आसानी से सत्ता प्राप्त करने जैसे आसान मर्म को समझ  पाई और आज बड़ी आसानी से मिलने वाली सत्ता पे काविज है ।

यदि आपको मेरी इस बात पर कि -"सत्ता सिर गिनवाने पर मिलती है" भरोसा ना हो तो निम्न उदाहरण आपके सामने है जिन्हें पढकर आपको भी मेरी यह बात सही लगेगी कि -आजकल सत्ता सिर्फ गिनवाने यानी लामबंद होकर वोट देने पर ही हासिल होती है-
1- आज जो स्वर्ण जाति देश के हर क्षेत्र मे सत्ता  मे बहुतायत   मात्रा  मे मोजुद है उससे देश का हर वर्ग दुखी है पर इसे हटाने का कार्य तो सरकार सोच भी नहि सकती है । चूँकि स्वर्ण लामबंद होकर उसी राजनैतिक दल के पक्ष में सिर गिनवाते है मतलब वोट देते है जो राजनैतिक दल उनके जातिय हितों की रक्षा करें । अब जो दल या सरकार ये स्वर्ण अघिकार बंद करने की बात सोचते है तो डर जाते कि ऐसा करने से अगडि (स्वर्ण) जातिया नाराज हो जायेंगे और हमें तो वोट देंगे नहीं बदले में विपक्ष को वोट दे देंगे इससे वे सत्ता से बेदखल हो जायेंगे । अब ऐसा रिस्क कौन ले ?
मतलब साफ जाहिर है स्वर्णो ने लोकतंत्र में सिर गिनवाने वाली महिमा को बड़ी अच्छी तरह समझा और उसका फायदा उठा राज कर रहे है । आज हर सरकारी नौकरियों में  छल कपट निति के तहत उनके लिए तो दरवाजे खुलें ही है चाहे उनमे योग्यता हो या ना हों । और यही नहीं कुछ स्वघोषित स्वर्ण नेता चाहे किसी दल की सरकार हो उसमे मंत्री पद पा ही जाते है महज इस योग्यता पर कि वे एकजुट है|

2-अब मुसलमानों का उदाहरण ले लीजिए । वे भी लामबंद होकर किसी एक के पक्ष में चुनावों में सिर गिनवाते है और जिस दल को उनके वोट चाहिए वो सरकार बनने के बाद उनके तुष्टिकरण करने का पुरा ध्यान रखता है । इसका उदाहरण आप आजादी के बाद से ही देख रहे है कि किस तरह कांग्रेस सरकार इनका तुष्टीकरण करती आ रही है यही नहीं कई मामले ऐसे भी आये है कि कांग्रेस ने इस वोट बैंक की खातिर देशहित को भी परे किया है । इनके तुष्टीकरण की खातिर देश के कानून तक बदलें गए है । ताजा उदाहरण आप मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी का देख सकते है कि किस तरह वह मुस्लिम वोट बैंक के लिए उनका तुष्टीकरण करने में लगी है ।
कहने का मतलब साफ है मुस्लमान भारत में अल्पसंख्यक है फिर भी वे सरकारों व राजनैतिक दलों से जो चाहे पा लेते है, किसी भी सरकार को झुकाने का माद्दा रखते है वह भी सिर्फ सिर गिनवाने की कला के पीछे ।
मतलब साफ़ है मुसलमानों ने भी लोकतंत्र की इस सिर गिनवाने वाली खास बात का मर्म समझ लिया और वे कम होने के बावजूद वो सब पा जाते है, जो वे चाहते है कोई भी दल उनकी उपेक्षा नहीं कर सकता ।

3- जाटों ने भी लोकतंत्र की इस सिर गिनवाने वाली बात को बड़ी बखूबी समझा और चुनावों में लामबंद हो वोट डालने शुरू किये उनके थोक वोट देखकर लगभग सभी राजनैतिक दलों ने चुनावों में जाट प्रत्याशी उतारने शुरू किये और वे अपने स्वजातीय द्वारा लामबंद होकर दिए वोटों से जीत कर सत्ता के भागीदार बने । यही नहीं राजस्थान के जाटों ने अपनी इसी लामबंदी का फायदा आरक्षण की सुविधा पाने में किया । उनके वोट बैंक को देखते हुए सरकार ने उनकी आरक्षण में शामिल करने की मांग मान ली । अब राजस्थान में कोई सरकारी कार्यालय ऐसा नहीं जहाँ जाट कर्मचारी नहीं ।
और जाटों ने ये सब पाया लोकतंत्र में सत्ता के लिए सिर गिनवाने वाले आसान उपाय को अपनाकर ।तो रजक भाइयो उपरोक्त उदाहरण पढकर जो आपके सामने प्रत्यक्ष भी है आपको भी लोकतंत्र में सिर गिनवाकर सत्ता हासिल करने की महिमा के बारे में समझ आया होगा । अब जब सिर्फ सिर गिनवाने से सत्ता हासिल हो सकती है तो सिर कटवाने की बातें करने की क्या जरुरत ?

लोकतंत्र के इस मर्म को समझिए और लामबंद हो एक जबरदस्त वोट बैंक में अपने आपको तब्दील कर दीजिए कि सारे राजनैतिक दल आपके आगे पीछे हाथ जोड़कर भागे फिरें और आप उनसे देशहित में जो करवाना हो वो अपनी मर्जी से करवाएं । पर इसके लिए जरुरी है  "रजक एकता "। हम सब एक होकर, अपनी एकता के बल पर फिर अपना खोया गौरव पा सकते है । हमें यह एकता स्व-कल्याण और देशहित को ध्यान में रखकर ही लिखा है ॥

जय संत गाडगे
         किशन लाल



Posted via Blogaway


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