Sunday, 15 May 2016

रजक राजनिति part-2

रजक समाज का बेडा गर्त क्यो

रजक विद्यार्थियों के द्वारा राजनीति मे हिस्सेदारी को ले कर समाज के प्रबुद्ध एवं वरिष्ठ लोगों द्वारा प्रश्न उठाये जाते रहे है। उनका तर्क रहा है कि विद्यार्थी जिनका कि मूल उद्देश्य विद्या अध्यन करना है, यदि राजनीति मे सक्रीय रूप से भाग लेते है, तो क्या वे अपने मूल उद्देश्य से भटक नहीं जायेंगे ? ओर क्या यह कार्य उनके भविष्य निर्माण मे बाधक नहीं होगा ?

यह सही है कि विद्यार्थियों का मुख्य उद्देश्य पढाई करना है। उन्हें अपना पुरा ध्यान उस ओर लगाना चाहिऐ, लेकिन सामाजिक एवम राष्ट्रिय परिस्तिथियों का ज्ञान ओर उसके सुधार के उपाय सोचने की योग्यता पैदा करना भी शिक्षा मे शामिल होना चाहिऐ, ताकी वे राष्ट्रिय एवं सामाजिक समस्याओं के समाधान मे अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर सके। क्यूंकि ऐसी शिक्षा व्यवस्था जो विद्यार्थियों को देश की संरचना निमार्ण मे कोई भागीदारी नहीं देती- उन्हें व्यवहारिक रूप से अकर्मण्य बनाती है। उसे हम पूर्णत: सार्थक नहीं कह सकते है। वैसे भी एक प्रजातांत्रिक राष्ट्र मे प्रत्येक नागरिक प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से राजनीति तथा राष्ट्रिय कार्यप्रणाली मेँ भागीदारी निभाता है ओर ऐसे मेँ राजीव गांधी द्वारा प्रदत्त 18 वर्ष के व्यस्क मताधिकार से छात्रों की भागीदारी तो स्वत: ही स्पष्ट हो जाती है।
                 अत: उपरोक्त परिस्तिथियों मे रजक राष्ट्रिय नेतृत्व एवं रजक समाज के प्रबुद्ध एवं वरिष्ट लोगो का दायित्व है की वे छात्रों मे, जिन्हे कल देश की बागडोर हर स्तर पर अपने हाथों मे लेनी है- नेतृत्व क्षमता पैदा करें, उन्हें उनके राष्ट्रिय कर्त्तव्यों के प्रति जागरूक बनायें, उन्हें सांप्रदायिक व प्रथक्तावादी ताकतों के विरुद्ध एकजुट करें, उन्हें लोकतांत्रिक कार्यप्रणाली से अवगत कराएँ ओर साथ ही राष्ट्रिय समस्याओं के समाधान मे उनकी भागीदारी सुनिश्चित करें। यदि वे ऐसा नहीं करते है तो वे ना सिर्फ राष्ट्र ऒर रजक समाह के साथ विश्वासघात करेंगे, बल्कि यह देश की भावी पीढी के साथ भी घोर अन्याय होगा। क्योंकी ऐसा ना करने पर हि रजक समाज मे एक ऐसी नेतृत्व शून्यता पैदा हुई जो रजक समाज को अनजाने अंधकारमय भविष्य की ओर धकेल देगी।

इसके अतिरिक्त छात्रों को भी चाहिऐ की वे पढे, जरुर पढे, परंतु साथ ही राष्ट्रिय गतिविधियों मे भी सक्रीय भागीदारी निभाए ओर अधिकार तथा जिम्मेदारियों को समझते हुये राष्ट्रिय परिपेक्ष्य मे जब, जहाँ, जितनी आवश्यकता हो अपना संपूर्ण योगदान दे। ऐसा करने पर ही वो रजक समाज को उन्नति के चरमोत्कर्ष ले जा सकने मे सफल हो सकेंगे तथा उस राष्ट्र का निर्माण कर सकेंगे जो बाबा संत गाडगे के सपनो का राष्ट्र था।

NOTE :- IAS , IPS अगर तुलसि का पॊधा है तो  एक नेता बट ब्रक्ष है

जय संत गाडगे

             किशन लाल


No comments:

Post a Comment