अo भाo धोबी महासंघ के वरिष्ट सदस्य गण 🙏🏻
आप के द्वारा अo भाo धोबी महासंघ के तत्वधान मे चलाये जाने वाले अम्बेडकरी विचार धारा पर हमारे द्वारा कुछ आक्षेप लगाये जाने पर कुछ व्यक्तिगत रुप से जानने वाले के साथ WhatsApp, Facebook जैसे माध्यम से जुडे दोस्त हम से क्रुद्ध हो गये थे वैसे दोस्त, परिचित, रिस्तेदार, वरिष्ट गण से निवेदन है कुछ तथ्य को जरुर संज्ञान मे लेगे ऒैर समाज को सहि दिशा देने का प्रयत्न करेगे 🙏🏻
मेरे द्वारा लगाये गये तीन मुख्य आक्षेप:-
1) BAMCEF वास्तव मे ब्राह्मण सेफ है कि संस्था है ॥
2)मुलनिवासी बनाम आर्य कि गलत थ्युरी..
3)ब्राह्मणो के पोथी क्या है? ??
साहित्य या इतिहास?
इतिहास नहि कहा जा सकता. .. साहित्य है ॥
तो इस साहित्यक मिथ्य को आधार बना कर BAMCEF जो अम्बेडकरनामा बनाया है वो भी ब्राह्मणो कि पोथी के समान कचरा है ॥ सच होने का आभास करायेगा पर सच का पता नहि चलेगा ॥
इतिहास पढे, , साहित्य नहि 🙏🏻 सच जाने, कहाँनिया नहि ।
ये तीनो उपरोक्त हमारे द्वारा लगाये जाने वाले मुख्य आक्षेप थे. ...इस लिये इसका अस्पष्टिकरण हमे हि देना होगा क्योकि हम अपने समाज को दिगभ्रमित होते नहि देख सकते जिस समाज मे हम पले पढे, इसके लिये हमारे भी कुछ कर्तव्य है । अस्पष्टि करण निम्न है 🙏🏻
अo भाo धोबी महासंघ के ग्रुप मे कई ऎसे मैसेज वरिष्ट गण के द्वारा दिये गये जिस का कोई ऎतिहासिक पुरातात्विक वजुद नहि है ॥ पहले से हमारा धोबी समाज ब्राह्मण के फैलाये जाल, रमायण, महाभारत जैसे साहित्य ऒैर हर पर्व त्योहार पर मिथक कथाऒ के प्रचार से भ्रमित थे अब बामसेफी के झांसे मे फस कर ब्राह्मणो के फैलाये कथा, कहानियो के अपोजिट कथा से भ्रमित हो रहे है ..👇🏻
1) राम, कृष्ण जैसे साहित्य गल्प पात्र कि कोई ऎतिहासिक, पुरातात्विक सबुत मॊैजुद नहि है तो बामसेफि अम्बेडकर वादी किस वैज्ञानिकता के आधार पर "संबुक",एकलब्य जैसे साहित्यक पात्र को मुलनिवासी बता कर किस को स्थापित कर रहे है? ब्राह्मणी मिथक साहित्य को या मुलनिवासी को?
राम,कृष्ण, पाण्डव,बलराम काल्पनिक पात्र साहित्यक मिथक है तो संबुक, एकलब्य, कर्ण, शबरी यथार्त (सच) कैसे हो गया ? ब्राह्मणी साहित्य के दोनो पात्र अच्छाई-बुराई के रुप मे एक दुसरे के पुरक है तो एक मुलनिवासी दुसरा विदेशी कैसे कह सकते है?
ये बामसेफी ब्राह्मणी साहित्य के अपोजिट पात्र को स्थापित नहि बल्कि पुरा ब्राह्मण शोसक समुदाय के साहित्य को हि स्थापित कर रहे है ॥इस लिये कहा हि BAMCEF ब्राह्मण सेफ करने कि संस्था है ॥
2) सबसे बडा अश्चर्य तब हुआ जब अo भा0 धोबी महासंघ के वरिष्ट सदस्य द्वारा "मै होलिका बोल रहि हुँ" कथा प्रचारित किया गया ॥
हर प्राचिन त्योहार मे ब्राह्मण द्वारा कोई ना कोई मिथकिय कथा घुसेड कर उसे अपना लिया आप इसका विरोध नहि कर के होलीका को मुलनिवासी बता दिया, साथ हि होलिका का बलात्कार करवा दिया, रंग या अबीर लगाये जाने कि नई शब्दावली गढ कर अ+बीर अर्थात कायर बता दिया ॥
मै बहुत हत प्रभ हो गया ये कि आप मिथ्य, भ्रमाने वाली ब्राह्मणी कथा का विरोध ना कर के होलिका का जो मिथ्य गढा वो पुरी तरह कल्पना पर आधारीत है किसी पुस्तक मे प्रमाण नहि है स्पष्ट झुठा प्रतित होता है ॥ ऒैर ब्राह्मणी ब्रचस्व कि कथा कहाँनियो को हि हष्ट पुष्ट कर दिया ॥ ऎसे भ्रमित कथा को प्रचारित ना करे 🙏🏻 जिस के प्रभाव से प्रभावित होकर हमारे धोबी समाज अपने दुश्मो मे इजाफा कर के खुद के व्यवसाय पर कुल्हाडि चला ले ऒैर पुरे समाज से अलग थलग हो जाये ॥
ऒैर रहि बात त्योहारो के मुल ऒैर उसके ऎतिहासिक विकाशक्रम को खोज कर सहि रुप मे स्थापित करने कि जिस से हमारे धोबी समाज का *समाजिक स्तर तो बढेगा* हि साथ हि हमारे धोबी समाज मे क्रातिकारी बुद्धिजीवियो कि संख्या भी बढेगी ऒैर सुचारु अध्यन पर जोर देगे ॥ब्राह्मणो ग्रंथो के झुट के पुलिंदा से बाहर भी होगे ॥
*मै आपने कुछ सोध का सहारा लेकर इस त्योहार कि सत्यता पर प्रकाश डालता हुँ ॥ इस त्योहार का जन्म हमारे रजक समाज द्वारा हुआ है क्यो कि आज के परिदृष्य मे रंगने अर्थात रंग कर्मी , केवल एक जाती रजक (धोबी ) है ॥*
................ होली त्योहार का जन्म पुरातन समाज मे मॊैसम पर अधारित था ॥ शीत ऋतु मे कपडे को रंगना ऒैर सुखाना बहुत हि कष्ट कारक था ऒैेर व्यवसाय मे गति धीमा हो जाता था ॥ परिवर्तित मॊैसम की वजह से रजक(रंगरेज) खुश हुए होगे ऒैर एक दुसरे से गले मिल कर अपने हि रंगो को एक दुसरे को लगाये होगे ॥ इस लिये वसंत अर्थात गृष्म ऋतु के आगमन मे होली अर्थात रंगोत्सव मनाये जाने जैसी प्रथा का निर्माण हुआ होगा ॥ *इस के प्रमाण हमे अंग्रेजी इतिहासकार तथा पुरातात्विक ह्वीलर के मोहनजोदडो कि खुदाई के निष्कर्श से मिलता है ॥*
ह्वीलर को खुदाई मे रंगरेजो के रंगे जाने वाले कर्मशाला 87×64.5 फुट का मिला ॥ जिसमे ध्यान देने वाली बात है कि तीन कमरो मे जिसमे बहुत सफाई के साथ ईटे बिछी हुई फर्श मिला ॥ जिसमे एक कमरे मे शंकु आकार के तीन गढ्ढा जो नाद(डावर) जारो के स्थान होता था ऒैर कमरे के एक कोने मे कुंआ मिला जिसमे सधारण आकार कि सिढियां मिली जो रंगरेज (रजक ) द्वारा रंगने कि नादे थी
इस पर एक अन्य विद्वान *जेकेता हाकस* ने इस पर स्पष्ट विचार दिये कि कमरे मे कुए होना इस बात कि ऒैर इसारा करती है कि कपडो को रंगने से पहले इसे झार (alkaline) द्वारा भिगो कर पैरो से नादो मे दबाता (गुंदता) था फिर इसे रंगा जाता था ॥ इस प्रोसेस को आज भी धोबी (रजक) समाज द्वारा भागलपुर मे सिल्क कपडो के रंगाई मे करता आ रहा है ॥
इस ऎतिहासिक प्रमाण को ना मानते हुए ब्राह्मणी मिथ्य साहित्य ऒैर bamcef के प्रतिक्रांति के झांसे मे फस कर पुरे समाज का समाजीक स्थती ऒैर आर्थीक दोनो तरह से नुकसान होना तय है ॥
3) हम जानते है सम्राट अशोक के बाद कोई शस्क्त शासक नहि होने कारण भारत के ऎश्वर्य से आर्कशित होकर मुट्ठि भर - भर के विदेशी अक्रांत, ऒैर जमिने ,या पशु चारागाह कि तलासते हुए कई कविले इस भारत कि ऒैर आर्कशीत हुए जिसमे हुण, मंगोल, सिथीयन (युनानी ) अरबी, थाई, चम्पु etc आते गये ओैर विभीन्न जातियो मे स्थापित होते गये. .. तो इस सच को झुटला कर आर्य बनाम मुलनिवासी जैसे दो वर्ग मे बाट कर अपने स्वजाती बंधु को क्यो उलझा रहे है ॥ इस तरह के ज्ञान हमारे समाज के लोगो को कुण्ठित कर अर्कम बना दे रहा है ॥ सच बताईये सच को प्रचारित करे जिस से हमारे समाज मे नेतृत्व करने वाले जेनरेशन का विकास होगा ऒैर सफलता कि बुलंद ऊचाईयो को छुने कि क्षमता का विकाश होगा ॥
आपका अप्रिय 🙏🏻किशन कुमार लाल🌹mob - 9852003692