Saturday, 13 March 2021

पुरखों के नाम समर्पित रजक समुदाय का सब से बडा उत्सव "बहर पूजा"* भाग - 1

*पुरखों के नाम समर्पित रजक समुदाय का सब से बडा उत्सव "बहर पूजा"* भाग - 1

भागलपुर, सुलतानगंज - शाहकुण्ड के बीच बेलथु ग्राम मे एक टूटे फूटे ईंटों के  ढह गये अवशेष आज भी हमारी संस्कृति के जिंदा होने के सबूत पेश कर रही है जो कभी अपने यॊैवन काल मे पूरे रजक समुदाय के लिए एक मात्र सबसे बड़ा उत्सव 'बहर  पूजा,' के नाम से हुआ करता था ॥

यह बहर पूजा जो मुख्यतः सावन में रजक समुदाय के मुखिया द्वारा महीने के दो दिन तय कर लिया जाता था ऒैर सभी रजक समुदाय नहा धोकर, वृद्ध द्वारा सफेद धोती कुर्ता, नवयुवक द्वारा नये कपड़े पहन कर धानु बाबा थान पहुँचते थे। जिसमें मुख्य रूप से धानु बाबा *थान* की ही  पूजा होती थी ॥ वर्षो से चली आ रही यह  परंपरा अपने आप में अनोखे रस्मों रिवाजों के साथ सदियो पूर्व के भव्य इतिहास को अपने में समाहित किए हुए थी ॥ ये बहर मेला अपने आप में इस लिये अनूठा है कि इसमें रजक समुदाय द्वारा अपने पितरों को दारु का प्याला अर्पित करते थे इसके उपरान्त ही घर के मुखिया दारु को प्रसाद के रुप में ग्रहण करते थे ॥ तथा फुलाईस रखा जाता जिसमे लोटा को उल्टा रख कर इसके पेंदी मे अरवा चावल रख कर इसके ऊपरी हिस्से पर सुपारी रखा जाता था जिसे पानी से भिंगोया जाता था।  जिसके कुछ समय उपरान्त ये सुपारी गिर जाये तो इसे पुरखों कि स्वीकृति मानी जाती थी ॥ इस फुलाईस वाली परंपरा के उपरान्त ही बली दी जाती थी ॥ जानकर अश्चर्य होता है कि धानु बाबा थान मे सिर्फ सिंगारी (मिट्टी के अंगुली साईज के उभरे हुआ जैसा ,।।।।।।।,  7 लाईने होती थी जो पुरे समाज के लिये पुजनिय होते थे ॥ इसी सिंगारी पर झांपी जो कागज के चॊैडि पट्टि के बने गोलाकार आकार जो बीच से खाली  होता था इस सिंगारी के उपर चढाते (पतले धागे कि सहायता से ,लटकाते थे ) थे ॥ 
 लगभग 25-30 वर्ष पूर्व इस मेले कि भव्यता चरम पर थी पर कुछ ही वर्षों में यह परंपरा कुछ प्रगतिशील कहे जाने वाले समाज सुधारक जड़ बुद्धि बिना इस परंपरा का बिना दस्तावेजी करण किये रजक समुदाय द्वारा इस भव्य परंपरा को खत्म करने  में सफल हुए । 

इस परंपरा को जीवंत रुप मनाने वाले कि दो पीढियां सैकड़ों कि तादाद में वर्तमान मे मौजूद है जो इस मेले में श्रद्धालु बन कर जाते थे। इस रजक समाज के मेले कि भव्यता के बारे में बताते बताते कईयो के गले रुंद्ध हो गये तो कई के आँखो मे  आंसू छलक गये ॥ ये दो पीढी के नाम (1) दिलीप रजक , उम्र 55 वरीय कार्यालय अधीक्षक, उत्तर पूर्व रेलवे, कटिहार (सेवारत), बीरु रजक, स्व. राजू रजक, धीरज रजक ,नरसिंह रजक(ऊर्म 80 वर्ष) ,विष्णु रजक (65), बिंदु रजक (55),  etc सारे सुलतानगंज, भागलपुर के विभिन्न क्षेत्र के निवासी हैं।

*रजक समुदाय द्वारा पुरखों को दारु अर्पित, ऒैर बलि देने कि परंपरा संपूर्ण भारत में विद्यमान थी:-* 
वाराणसी (उत्तर प्रदेश)  - चॊैका घाट का प्याला का मेला ॥
भागलपुर (बिहार)  :- वर्तमान मे धोबीया काली मंदिर के प्रांगण में इस मेले का प्रयोजन होता था ।

रजक समाज की यह प्रमुख  परंपरा पूरे देश मे सिर्फ धोबी जाति द्वारा मनाई जाती थी, जिसमे सिर्फ रजक समुदाय ही भाग  लेते थे जिससे संपूर्ण भारत के धोबी समुदाय एक पारंपरिक एकता के सूत्र में पिरोये हुए थी, अफसोस आज के अक्षर ज्ञानी  बुद्धिजीवी रजक समाज कि एकता के लिये बेतुके, तथ्य हीन प्रयास करते रहते दिख जायेगे ॥ 

जब इतिहास लेखन कि प्ररंपरा हमारे धोबी समाज मे नहि थी तो हमारे पुरखो ने अपने लाखो- हजारो वर्षो का इतिहास इसी संस्कृति के माध्यम से जीवित रखे हुए थे ॥ 
कोई भी परंपरा क्यों सदियो से चली आ रही है ?
 किसी परंपरा में हमारे पुरखों का क्या संदेश छिपा होता है? 
बिना इसके निहित अर्थ जाने प्रगतिशीलता कि आंधी मे कोई परंपरा, संस्कृति, पुरखों का थान(डीह, स्थान) नहीं छोड़ा जाना चाहिये था, कोई भी संस्कृति, परंपरा आप के समुदाय के विकाश मे बाधक नहीं होता, यह पूरे समुदाय के लिये प्रेरणाश्रोत,जीवंत समुदाय के एकता का प्रतीक होता है । 
Note- थान(ढिह),  दारु ,बहर, फुलाई शब्दों को लोकभाषा में ही रखा गया है॥
भाग - 2 में इस परंपरा के भव्य इतिहास से रूबरू होंगे ।🙏🏻
🌹किशन कुमार लाल 🌹भागलपुर , mob no 9852003692

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