Wednesday, 17 March 2021

पुरखो के नाम समर्पित रजक समुदाय का सब से बडा उत्सव "बहर पुजा" भाग-2

पुरखो के नाम समर्पित रजक समुदाय का सब से बडा उत्सव "बहर पुजा" भाग-2

रजक समुदाय के इस परंपरा मे निहित लोक भाषा के  शब्दो के अर्थ स्पष्ट किये बिना इस के भव्य इतिहास कि ओर ले जाना सार्थक नहि होगा. . साथ हि एक लेखक होने के नाते यह अवस्य  हि सुनिश्चित करुगा कि किसी अन्य समुदाय द्वारा भाषाई छेड छाड नहि हो ॥  भाषा बदली नहि कि अर्थ अलग हो जाते है ॥

(1)  दारु  - शराब मे बहुत अंतर है

दारु कि महिमा अत्यंत निराली है, लोक देव,देवता को दारु चढाये जाने कि प्ररंपरा रहि , इसी दारु मे देव भी जोडा जाता है. .. देव तो शंकर महादेव का उपनाम है,  बुद्ध को भी लोक भाषा मे देव हि कहा जाता था । देवदारू एक पवित्र वृक्ष को कहा जाता है. . पंजाब मे आज भी आँखो मे डालने वाली दवा को दारु कहा जाता है. . दवा,दारु के साथ प्रयुक्त होते है दवादारु,  ॥ दारु के अन्य  अर्थ चिकित्सा, दवा, ऒैषद  लकडी,काठ, दानी, दानशील,  होता है ॥ कहि भी इसका गतल अर्थ नहि बताया गया ।
*इस प्रकार दारु को पवित्र द्रव कहा जा सकता है ॥*
 
उपरोक्त सारे अर्थ यह प्रमाणित करता है कि रजक समुदाय द्वारा अपने पितरो को चढाये जाने का सांकेतिक अर्थ यहि है कि हमारे पितरो द्वारा  दारु का प्रयोग दवा के रुप मे  चिकित्सा के क्षेत्र मे प्रयोग करते होगे ॥. दारु का दवा मे प्रयोग हमारे पुरखो कि अमानत है ॥ . सैधव सभ्यता मे दारु के प्रयोग के  प्रमाण मिले है । किसी अन्य सभ्यता  के भाषाई अर्थ मे इस प्रकार के प्रमाण नहि मिलते  ॥ .... अर्थात अन्य सभ्यता  दारु का गलत स्तेमाल करते थे  या यु हुँ कहे कि वो दारु के दवा मे स्तेमाल जानते नहि थे ॥ इस लिये जैसी सोच वैसी भाषा बनी ॥

1) शराब,:- जिन दो पदों से मिलकर बना है, वे हैं –शर और आब। ‘शर’ या ‘शर्र’ एक अरबी शब्द है, जिसका अर्थ है उपद्रव या फसाद; और ‘आब’ पानी को कहते हैं । अर्थात फसाद, या उपद्रव कराने वाला पानी ।
2) मदिरा, सोमरस शब्दो का प्रयोग वेदो मे बताई गई है मादक, उत्तेजक द्रव के रुप मे,  इंद्र के दरवार मे सुर, सुरा, सुन्दरी तीनो के साथ इसके प्रयोग गलत स्तेमाल के संकेत है ॥

🌹किशन कुमार लाल 🌹mob no - 9852003692

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