Monday, 15 June 2020

धोबी का कु्त्ता ना घर का ना घाट का

*धोबी का कुत्ता ना घर का ना घाट का*

पहले धोबी के सभी टायटल पर सोध कर पुर्ण सत्यापन कर चुंका हुॅ कि सम्राट अशोक के समय प्रशासनिक इकाई के अभिन्न अंग धोबी जाती हि था ॥

आईये इस से आगे जानने कि कोशीस करते है मध्यकाल मे किस शासक वर्ग से संघर्षरत् था हमारा समाज. ............. इसी कडि को उजागर करने के लिये एक संदर्भ पर ध्यान देना होगा. ...
"धोबी का कुतका ना घर का ना घाट का"
ये उक्ति तब बनी होगी जब तुर्को ने हम पर पुर्ण विजय पा ली ॥ क्यो कि कुतका एक तुर्की शब्द है जो तुर्क लोगो द्वारा व्यवहार किया जाता था ॥
कुतका का अर्थ "डण्ड" (लाठी) होता है. ... यानी सहि अर्थो मे ये "धोबी का डण्डा ना घर का ना घाट का" होगा. .......... चलिये जान्ने कि कोशीस करते है तुर्को ने ऎसा क्यो कहा होगा ॥ इसके लिये दो शब्दो पर गोैर करना होगा ॥ डण्ड ऒैर घाट पर. ......

डण्ड या डण्डा :-  प्राचीनकाल मे साफा - पगडी ऒैर दण्ड यानी छडी समाज के प्रभावशाली लोगो का पसंदीदा प्रतीक चिह्न थे ॥ राजा (सम्राट अशोक) ऒैर उसके पदाधिकारी (रज्जुक, व्युष्ट, श्रेष्ठी,  प्रादेशिक) के हाथ हमेशा दण्ड रहता था जो उसके न्याय करने ऒैर सजा देने के अधिकार होने का प्रतीक था ॥ (आज भी जिलो व तहसीलो के प्रशासको के लिए दण्डाधिकारी शब्द हि प्रयुक्त होता है) साथ हि राजनिती शास्त्र को दण्ड निती हि कहते है ॥
बुद्ध ने अपने संघ के भिक्कु को दण्ड रखने का अधिकार दिया था जो भिक्कु के आत्मरक्षा के प्रयोग मे आता था ॥ यानी डण्ड बुद्ध के धम्म (जिवन जिने कि कला) का अभीन्न अंग था ॥ जो भिख्खु के साथ अशोक के पदाधिकारी का धम्म प्रचार प्रसार का  प्रतिक चिन्ह बन गया था ॥ इसके उपरान्त बोद्ध के धम्म डण्ड को आर्यो ने  धर्म बना डाला. ..........
आर्यो ने धर्मशास्त्र मे डण्ड का महत्व इतना अधिक दिया कि मनुस्मृति में तो डंड को देवता के रूप में बताया गया है। एक श्लोक है-
दण्डः शास्ति प्रजाः सर्वा दण्ड एवाभिरक्षति।
दण्डः सुप्तेषु जागर्ति दण्डं धर्मं विदुर्बुधाः।।
( दंड ही शासन करता है। दंड ही रक्षा करता है। जब सब सोते रहते हैं तो दंड ही जागता है। बुद्धिमानों ने दंड को ही धर्म कहा है।)
यानी जो बोद्ध का धम्म था वहि आर्यो के लिये धर्म बना ॥ यानी डण्ड को धर्म माना ॥ डण्ड का आर्थ धर्म हुआ ॥
घाट:- ये घाट को स्थान करने वाला या कपडे धोने के घाट नहि हो कर नदी तट की प्राचीन बस्तियों के साथ जुड़े घाट शब्दों पर गौर करें मसलन-ग्वारीघाट, बुदनीघाट, बेलाघाट, कालीघाट जिनमें स्नान का भाव न वस्ती, समाज था ॥

अब पुनः विचार करे "धोबी का डण्डा ना घर का ना घाट का"

उपरोक्त उदाहरणो मे डण्डा (धर्म अर्थात धम्म ), घाट (वस्ती, ग्राम, गाॅव) कर के देखे. ........

"धोबी का धम्म ना घर का ना बस्ती का" होगा. ...... क्यो कि मध्य काल मे भी अंतिम संघर्ष तुर्को से हुआ ऒैर तुर्को ने (1) बख्तियार खिलजी एक तुर्क ने नालन्दा जलाया था ॥
2) विक्रमशीला विश्व विधालय को भी तुर्कि के बख्तियार खिलजी ने हि जलाया था ॥

इस प्रकार हम पाते है कि तुर्को के द्वारा हमारा पुर्णतः विनाश हुआ जो हमारा धम्म ना घर मे रह पाया ना समाज मे 🙏🏻
🌹किशन कुमार लाल🌹भागलपुर⭐🌙

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