Friday, 26 March 2021

पाली मे रजक का अर्थ

*पहले अण्डा (साबुत) पैदा होता है टुट कर आमलेट (आम+लेट) बनता है ॥*

पाली ऒैर संस्कृत एक हि है 🙏🏻
K k lal का ज्ञान🌹

💫: एक नागनाथ तो सुसरा सांपनाथ है ॥🙏🏻 बचो बच सको तो 🙏🏻

अण्डा (साबुत) -- *रजक फारसी के शब्द है जिस का अर्थ रोजी, रोटी देने वाला होता है जिसका मनतव्य राजा से है*।

आमलेट-- *पाली मे इसे रजक्ख बोला गया जिस का अर्थ रज= धुल कन मिट्टी, क्ख= धोना*
इस लिये संस्कृत मे रजक का अर्थ धोबी हुआ

इस लिये कहा एक नाग नाथ दुसरा सांप नाथ ॥🙏🏻

किशन कुमार लाल🌹

Wednesday, 17 March 2021

पुरखो के नाम समर्पित रजक समुदाय का सब से बडा उत्सव "बहर पुजा" भाग-2

पुरखो के नाम समर्पित रजक समुदाय का सब से बडा उत्सव "बहर पुजा" भाग-2

रजक समुदाय के इस परंपरा मे निहित लोक भाषा के  शब्दो के अर्थ स्पष्ट किये बिना इस के भव्य इतिहास कि ओर ले जाना सार्थक नहि होगा. . साथ हि एक लेखक होने के नाते यह अवस्य  हि सुनिश्चित करुगा कि किसी अन्य समुदाय द्वारा भाषाई छेड छाड नहि हो ॥  भाषा बदली नहि कि अर्थ अलग हो जाते है ॥

(1)  दारु  - शराब मे बहुत अंतर है

दारु कि महिमा अत्यंत निराली है, लोक देव,देवता को दारु चढाये जाने कि प्ररंपरा रहि , इसी दारु मे देव भी जोडा जाता है. .. देव तो शंकर महादेव का उपनाम है,  बुद्ध को भी लोक भाषा मे देव हि कहा जाता था । देवदारू एक पवित्र वृक्ष को कहा जाता है. . पंजाब मे आज भी आँखो मे डालने वाली दवा को दारु कहा जाता है. . दवा,दारु के साथ प्रयुक्त होते है दवादारु,  ॥ दारु के अन्य  अर्थ चिकित्सा, दवा, ऒैषद  लकडी,काठ, दानी, दानशील,  होता है ॥ कहि भी इसका गतल अर्थ नहि बताया गया ।
*इस प्रकार दारु को पवित्र द्रव कहा जा सकता है ॥*
 
उपरोक्त सारे अर्थ यह प्रमाणित करता है कि रजक समुदाय द्वारा अपने पितरो को चढाये जाने का सांकेतिक अर्थ यहि है कि हमारे पितरो द्वारा  दारु का प्रयोग दवा के रुप मे  चिकित्सा के क्षेत्र मे प्रयोग करते होगे ॥. दारु का दवा मे प्रयोग हमारे पुरखो कि अमानत है ॥ . सैधव सभ्यता मे दारु के प्रयोग के  प्रमाण मिले है । किसी अन्य सभ्यता  के भाषाई अर्थ मे इस प्रकार के प्रमाण नहि मिलते  ॥ .... अर्थात अन्य सभ्यता  दारु का गलत स्तेमाल करते थे  या यु हुँ कहे कि वो दारु के दवा मे स्तेमाल जानते नहि थे ॥ इस लिये जैसी सोच वैसी भाषा बनी ॥

1) शराब,:- जिन दो पदों से मिलकर बना है, वे हैं –शर और आब। ‘शर’ या ‘शर्र’ एक अरबी शब्द है, जिसका अर्थ है उपद्रव या फसाद; और ‘आब’ पानी को कहते हैं । अर्थात फसाद, या उपद्रव कराने वाला पानी ।
2) मदिरा, सोमरस शब्दो का प्रयोग वेदो मे बताई गई है मादक, उत्तेजक द्रव के रुप मे,  इंद्र के दरवार मे सुर, सुरा, सुन्दरी तीनो के साथ इसके प्रयोग गलत स्तेमाल के संकेत है ॥

🌹किशन कुमार लाल 🌹mob no - 9852003692

Saturday, 13 March 2021

पुरखों के नाम समर्पित रजक समुदाय का सब से बडा उत्सव "बहर पूजा"* भाग - 1

*पुरखों के नाम समर्पित रजक समुदाय का सब से बडा उत्सव "बहर पूजा"* भाग - 1

भागलपुर, सुलतानगंज - शाहकुण्ड के बीच बेलथु ग्राम मे एक टूटे फूटे ईंटों के  ढह गये अवशेष आज भी हमारी संस्कृति के जिंदा होने के सबूत पेश कर रही है जो कभी अपने यॊैवन काल मे पूरे रजक समुदाय के लिए एक मात्र सबसे बड़ा उत्सव 'बहर  पूजा,' के नाम से हुआ करता था ॥

यह बहर पूजा जो मुख्यतः सावन में रजक समुदाय के मुखिया द्वारा महीने के दो दिन तय कर लिया जाता था ऒैर सभी रजक समुदाय नहा धोकर, वृद्ध द्वारा सफेद धोती कुर्ता, नवयुवक द्वारा नये कपड़े पहन कर धानु बाबा थान पहुँचते थे। जिसमें मुख्य रूप से धानु बाबा *थान* की ही  पूजा होती थी ॥ वर्षो से चली आ रही यह  परंपरा अपने आप में अनोखे रस्मों रिवाजों के साथ सदियो पूर्व के भव्य इतिहास को अपने में समाहित किए हुए थी ॥ ये बहर मेला अपने आप में इस लिये अनूठा है कि इसमें रजक समुदाय द्वारा अपने पितरों को दारु का प्याला अर्पित करते थे इसके उपरान्त ही घर के मुखिया दारु को प्रसाद के रुप में ग्रहण करते थे ॥ तथा फुलाईस रखा जाता जिसमे लोटा को उल्टा रख कर इसके पेंदी मे अरवा चावल रख कर इसके ऊपरी हिस्से पर सुपारी रखा जाता था जिसे पानी से भिंगोया जाता था।  जिसके कुछ समय उपरान्त ये सुपारी गिर जाये तो इसे पुरखों कि स्वीकृति मानी जाती थी ॥ इस फुलाईस वाली परंपरा के उपरान्त ही बली दी जाती थी ॥ जानकर अश्चर्य होता है कि धानु बाबा थान मे सिर्फ सिंगारी (मिट्टी के अंगुली साईज के उभरे हुआ जैसा ,।।।।।।।,  7 लाईने होती थी जो पुरे समाज के लिये पुजनिय होते थे ॥ इसी सिंगारी पर झांपी जो कागज के चॊैडि पट्टि के बने गोलाकार आकार जो बीच से खाली  होता था इस सिंगारी के उपर चढाते (पतले धागे कि सहायता से ,लटकाते थे ) थे ॥ 
 लगभग 25-30 वर्ष पूर्व इस मेले कि भव्यता चरम पर थी पर कुछ ही वर्षों में यह परंपरा कुछ प्रगतिशील कहे जाने वाले समाज सुधारक जड़ बुद्धि बिना इस परंपरा का बिना दस्तावेजी करण किये रजक समुदाय द्वारा इस भव्य परंपरा को खत्म करने  में सफल हुए । 

इस परंपरा को जीवंत रुप मनाने वाले कि दो पीढियां सैकड़ों कि तादाद में वर्तमान मे मौजूद है जो इस मेले में श्रद्धालु बन कर जाते थे। इस रजक समाज के मेले कि भव्यता के बारे में बताते बताते कईयो के गले रुंद्ध हो गये तो कई के आँखो मे  आंसू छलक गये ॥ ये दो पीढी के नाम (1) दिलीप रजक , उम्र 55 वरीय कार्यालय अधीक्षक, उत्तर पूर्व रेलवे, कटिहार (सेवारत), बीरु रजक, स्व. राजू रजक, धीरज रजक ,नरसिंह रजक(ऊर्म 80 वर्ष) ,विष्णु रजक (65), बिंदु रजक (55),  etc सारे सुलतानगंज, भागलपुर के विभिन्न क्षेत्र के निवासी हैं।

*रजक समुदाय द्वारा पुरखों को दारु अर्पित, ऒैर बलि देने कि परंपरा संपूर्ण भारत में विद्यमान थी:-* 
वाराणसी (उत्तर प्रदेश)  - चॊैका घाट का प्याला का मेला ॥
भागलपुर (बिहार)  :- वर्तमान मे धोबीया काली मंदिर के प्रांगण में इस मेले का प्रयोजन होता था ।

रजक समाज की यह प्रमुख  परंपरा पूरे देश मे सिर्फ धोबी जाति द्वारा मनाई जाती थी, जिसमे सिर्फ रजक समुदाय ही भाग  लेते थे जिससे संपूर्ण भारत के धोबी समुदाय एक पारंपरिक एकता के सूत्र में पिरोये हुए थी, अफसोस आज के अक्षर ज्ञानी  बुद्धिजीवी रजक समाज कि एकता के लिये बेतुके, तथ्य हीन प्रयास करते रहते दिख जायेगे ॥ 

जब इतिहास लेखन कि प्ररंपरा हमारे धोबी समाज मे नहि थी तो हमारे पुरखो ने अपने लाखो- हजारो वर्षो का इतिहास इसी संस्कृति के माध्यम से जीवित रखे हुए थे ॥ 
कोई भी परंपरा क्यों सदियो से चली आ रही है ?
 किसी परंपरा में हमारे पुरखों का क्या संदेश छिपा होता है? 
बिना इसके निहित अर्थ जाने प्रगतिशीलता कि आंधी मे कोई परंपरा, संस्कृति, पुरखों का थान(डीह, स्थान) नहीं छोड़ा जाना चाहिये था, कोई भी संस्कृति, परंपरा आप के समुदाय के विकाश मे बाधक नहीं होता, यह पूरे समुदाय के लिये प्रेरणाश्रोत,जीवंत समुदाय के एकता का प्रतीक होता है । 
Note- थान(ढिह),  दारु ,बहर, फुलाई शब्दों को लोकभाषा में ही रखा गया है॥
भाग - 2 में इस परंपरा के भव्य इतिहास से रूबरू होंगे ।🙏🏻
🌹किशन कुमार लाल 🌹भागलपुर , mob no 9852003692

Friday, 12 March 2021

उपनाम मे क्या रका रखा है part 1

अगर आप अपने को हिन्दु धर्म का हिस्सा समझते है तो आपने पुर्वजो के दिये हुए सर नेम (टायटल) का प्रयोग नहि करे. .....
              ये सरनेम चुगली कर देता है आप कि पहचान बता देता है कि आप के पुर्वजो क्या थे ॥. ...... 
...    ..     आप के हर सरनेम के पुरातात्विक प्रमाण के साथ विधमान है कि आप के पुर्वज बोद्ध थे ,आप  बोधी हो ऒर सम्राट अशोक के वंश के हो, आप के रक्त मे महान सम्राट चक्रवर्ती राजा अशोक का खुन आप कि रक्त वाहिनी मे दॊड रहा है ॥ ये चित्कार कर रहा है चिख चिख कर अपने होने का वजुद बता रहा है. ....... 

ऒर आप  बहरे, गुंगे, अंधे बन कर, हिन्दुत्व कि अफिम के नशे मे मद मस्त हो कर. .. बोधी से धोबी बन कर अपने पुर्वजो को गालिया दे रहे हो उस का अपमान कर रहे हो उस कि खिल्ली उडा रहे हो ,उसे हसी का पात्र बना रहे हो. ...... जागो बंधु जागो. .. आप के पुर्वज आप को आवाज दे रहा है, ,अपने विरासत को बचाने के लिए सोर मचा रहा है चित्तकार मार के रो रहा है. ... बचा लो आपने ऒर अपने पुर्वजो कि विरासत को. .......धोबी लाल

Wednesday, 10 March 2021

पुष्यमित्र शुंग पुर्व बुद्ध के वाहक

गॊैतम बुद्ध ने बलि प्रथा को खत्म किया था पुर्व बुद्ध के समय बलि प्रथा थी जो सैधव सभ्यता से चलती आ रहि थी. ........  शुंग भी बोद्ध हि थे बस वो पुर्व बुद्ध के विचारो के वाहक थे इस लिये बलि प्रथा को चालु कराया था लेकिन यज्ञ हवन बाद मे आर्यो ने घुसेड कर अपने को स्थापित किया. ..............................सैधव सभ्ता कि मातृ देवी ऒैर पुष्यमित्र शुंग मे समानता से पता चलता है कि शुंग पुर्व बुद्ध के वाहक थे. ...

शुंग ब्राह्मण होता तो जनऊ जरुर पहनता. ..
शुंग ब्राह्मण होता तो मंदिर बनाता लेकिन भरतहुत, सांची के स्तुप बनाये थे. ... शुंग काल मे एक भी मंदिर नहि बना था ॥ किशन कुमार लाल🌹

राजपुत के उतपत्ति सिद्धांत

करवा चॊथ एक पुर्वतः बोद्धो का त्योहार रहा है. ..ये धोबीयो के द्वारा सुरु किया गया पर्व है. ........

 चलिये आप के अपने रिसर्च का कुछ अंश समझाता हुँ. .....

करवा ब्रह्मवर्तपुरान मे वर्णित एक पात्र है जो धोबीन है. .....जो अपने पति कि रक्षा मगर से करती है ....यहि से करवा चॊथ पर्व मनाया जाने लगा. .......
....करवाचॊथ को तोडे = कर +व+ चॊथ
कर का अर्थ बाजु भुजा होता है जो शक्ति के प्रतिक माना गया (वर्ण व्यवस्था का क्षत्रिय)

चॊथ = चॊथ का अर्थ होता है चॊथा अंश अर्थात चॊथा पुत्र
अब समझे. ... वर्ण व्यवस्था का चॊथा पुत्र कर (भुजा =क्षत्रिय = राजपुत)

इस लिये कहा जाता है करवा चॊथ राजपुतो के घर से निकली हुई प्ररंपरा है. ..... ये वास्तविक मे रजक पुत है. .........🌹k k lal🌹

Monday, 8 March 2021

धोबी की बेटी ऒैर वोट केवल धोबी को*

*समाज को संदेश  ** 
 *धोबी की बेटी ऒैर वोट केवल धोबी को** 

बात सुल्तानगंज जिला भागलपुर, बिहार की है, जहां सतीश रजक ,(04.01.1939_19.04.1994) मुख्य वाणिज्य इंस्पेक्टर (अधिकारी), उत्तर पूर्वोत्तर रेलवे, कटिहार मे कार्यरत् थे। सेवारत रहते हुए समाज की सेवा के लिये रजक सुधार समिति सुलतानगंज के सचिव के  रुप मे कार्य करते रहते थे।  हर महीने अवकाश लेकर , इस मीटिंग में शरीक होते और लोगों को जोड़कर जागरूक बनाते रहते थे। इनकी लगन और जागरूकता ने धोबी समाज को अपने कल्याण के लिये बहुत सारी जानकारी हासिल करवाया । ब्लॉक से सरकारी फंड तक की जानकारी लेते और भागदौड़ कर उन कल्याणार्थ को इन अशिक्षित और गरीब धोबी समाज तक पहुंचाने का काम करते। इनकी सुविधा के लिये सरकारी अनुदान के रुप में ब्लीचिंग पाॅउडर, वाशिंग पाउडर, साबुन तक कंट्रोल रेट में उपलब्द्ध कराते थे । इन महापुरुष कि भविष्य दृष्टि ऒैर समाज के लिये किये गये कार्य आज के परिवेश में भी उतनी ही प्रासंगिक है जितने 1970-80 दशक के समय थी ॥ इनके कई संदेशो में एक समाज के नाम दूरगामी संदेश कई मायनों में 21वीं सदी में भी सटिक है *धोबी की बेटी ऒैर वोट सिर्फ धोबी को* ॥ आज के राजनैतिक परिवेश के बिखराव में  धोबी समाज हर राजनीतिक दल कि कठपुतली बनकर रह गई है। इसी राजनैतिक दूरदृष्टि को ये महापुरुष 70 के दशक में ही समझ गये थे, इसलिये यह संदेश  हर सभा में जरुर लोगों के बीच रखते थे। ये संदेश इसलिये बहुत ही महत्वपूर्ण है कि स्वo सतीश रजक जी  समाज में उत्कृष्ट कार्य के लिये  धोबी समाज में बहुत ही रसूख रखते थे, जिस कारण बहुत से राजनैतिक दल की निगाहों में थे ॥ कई राजनैतिक दल इनके घर पर पैर घिसते नजर आते थे।फिर भी सभी राजनेता को  खाली हाथ ही वापस जाना होता था ॥ इस संबंध मे बहुत हि प्रेरणादायी घटना है कि ..  एक राजनेता स्वo सतीश रजक जी के धोबी समाज के बीच बड़ा रसूख से प्रभावित होकर सर्मथन लेने घर पहुंचे तो उनका स्पष्ट दो टूक जवाब था. .. *आप को मालूम होना चाहिये कि आप  जिस धोबी जाति से सर्मथन लेने आये हैं वो अपनी बेटी ओैर वोट धोबी को ही देते हैं ।*  
           .   *ये वो महापुरुष थे जो अपने स्वार्थ के लिये कभी धोबी समाज से दलाली नहीं की।  उनका मत था कि जिस प्रकार धोबी समाज कि बेटी धोबी समाज कि प्रतिष्ठा होती है उसी प्रकार वोट भी धोबी समाज की प्रतिष्ठा है ॥*  *जिस प्रकार बेटी दूसरे समाज में जाने से पूरे समाज का मान सम्मान गिरता है, उसी प्रकार वोट भी दूसरे समाज में जाने से धोबी समाज का मान सम्मान, प्रतिष्ठा, प्रगति दूसरों के अधीन हो जाता है ॥*

स्वo सतीश रजक जी जगह जगह धोबी समाज में जाकर बैठक कर लोगों की जागृति के लिये प्रयासरत् रहते थे। उन्हीं कुछ विचारों को क्रमबद्ध कर उनके उत्कृष्ट कार्य को आपलोगों के सामने रखने का प्रयास करता हूं..
1) उस समय धोबी समाज कि स्थिति बहुत दयनीय थी इस लिये धोबी समाज के कल्याण के लिये बर्तन, पंडाल, चादर, कम्बल कि व्यवस्था किया करते थे ताकि गरीब धोबी के बेटे, बेटी कि शादी में या अन्य अवसरों में बोझ ज्यादा ना पडे ॥ यह एक सामूहिकता और अपनापन का भी परिचायक था।
2) सभी धोबी को एक उचित दर पर कपड़े धोने के लिये प्रेरित करते थे ताकि आर्थिक रुप से धोबी समाज उन्नत हो सके और व्यवसाय की एकरूपता बनी रहे ॥
3)धोबी समाज के लिये सामूहिक सप्ताहिक अवकाश का प्रयास करते थे ताकि काम के बोझ तले स्वास्थ्य खराब नहीं हो और अपने सगे संबंधियों से मेलजोल कर सकें ॥
4) उनका कहना था कि अपने बच्चों को शिक्षा अवश्य दें ताकि सामाजिक सोपान में आगे बढ़ सकें।
5) संविधान में प्रदत्त कानून को सभी के साथ साझा करते थे और किसी प्रकार की समस्या से निपटने के लिए कानूनी प्रक्रिया की भी सलाह देते थे।

आज स्वo सतीश रजक जी हमारे बीच नहीं रहे पर उनके संदेश ऒैर कार्य आज भी धोबी समाज के लिये प्रेरणाश्रोत हैं।🙏🏻

🌹किशन कुमार लाल(बंटी रजक)🌹
Mob no- 9852003692