Thursday, 28 April 2016

ढुंढा धोबी(महाभारत)

कृष्ण गुरु ढुंढा धोबी

ढुढा धोबी का वर्णन द्वापर युग के काल मे महाभारत भगवत पुराण मे ऎसा प्रसंग मिलता है ऒर इसके बारे मे कहा गया कि भगवान श्रीक्रष्ण अपनी सेना के साथ आक्रमण करके कंस पर विजय प्राप्त करने गये तो पहले महल के पूर्व ढुढा धोबी से भेट हो गयी ॥ उसके पास कंस राजा के राजमहल के पवित्र व सुन्दर वस्त्रो की गठरियाँ थी जिसको पाने के लिये श्रीक्रष्ण ने अपनी व ग्वाल बालो से कहा कि उसके पास से कपडो की पोटलियाँ ले लो ऒर वस्त्र धारण करके ही नगर मे प्रवेश करे ॥ लेकिन इसके विपरीत ढूढा धोबी ने वस्त्र देने से साफ इन्कार कर दिया ऒर उसने कहा कि मै कंस का धोबी हूँ ऒर उनका नमक खाया हूँ मै गद्दारी व नमक हरामी नही कर सकता हुँ ॥ इस पर क्रष्ण की सेना व ग्वालवाल सब क्रोधित हो गये ऒर उस पर टूट पडे जिससे घमासान युद्ध हुआ ॥ यिद्ध मे ग्वालबाल भागते नजर आये फिर भी ढूढा धोबी वस्त्र देने को सहमत नही हुआ ॥ इस पर क्रष्ण क्रोधीत होकर गुस्से मे ढुंढा धोबी के दोनो हाथ काट दिये ॥ 󾭚 तब जाकर वह सुन्दर ऒर पवित्र वस्रो को पोटली ग्वाल वालो के ऒर सेना को उपयोगी हो सका ॥ यह द्रश्य देख अपने निर्दोष पति के हाथ कटे हुये पाकर क्रष्ण को श्राप दे दी ॥ श्राप के पश्चात क्रष्ण ने ढुढा की पत्तनी से क्षमा याचना करके माफी मागने लगे , मुझे क्षमा करो क्रोध मे विवेक को भुलकर मैने यह कदाचरन किया है , मै अभी तुम्हारे पति को पुनः ठीक कर देता हुँ तुम अपना श्राप वापिस ले लो ॥ ऎसा हुआ भी  कुछ समय पश्चात श्रीक्रष्ण ढुंढा धोबी से घनिष्ट मित्रता कर उससे मलयुद्ध के दाँव पेच सीखे क्योकि वह मलयुद्ध सिक्षा मे धोबी पछाड दाव कुशलता से  श्रीक्रष्ण ने सीख लिया तब जाकर क्रष्ण ने स्वय अपने मामा कंस को मल युद्ध मे धोबीया पछाड दाँव पेच से चारो खाना चित कर दिया ऒर कंस का वध कर विजय प्रप्त की ॥ ...... *"इस दुनिया में जब तक मेरी पूजा होती रहेंगी, तब तक तेरी पूजा होती रहेंगी..! यह आशीर्वाद था परमात्मा श्रीकृष्ण का रजक ठूंठा जी को..! आज भी जन्माष्ठमी पर मथुरा में पट के रूप में पहले रजकवंश की पूजा होती है..!*

   जय संत गाडगे



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