Wednesday, 16 September 2020

रज्जुक संघ के धोबी

साज श्रृगार रुप देख कर रानी कि तरह, ,, पर सर पे पोटरी (गठरी) विस्मय मे डाल देती है ॥ जैसे कोई रानी अपने प्रजा जनो के लिये महलो को छोड उनकि सेवा के लिये जा रहि हो ॥  जैसे बता रहा हो प्रजा कि सेवा सर्वोतम सेवा ॥ एक श्रवण संस्कृती मे ना कोई राजा रानी, ,, सभी समान ॥ आज इस कुल को क्या बना दिया गया, ,,, खुद मे झाक कर देखे क्या थे क्या बन गये ॥ पर कुछ इस संस्कृती के विरोधी भेडिये आप को क्या बना दिये, ,,,? ??🌹सम्राट अशोक द्वारा बनाये गये रज्जुक संघो के कार्य निष्टा पुर्वक पुरी इमानदारी से  रजक(धोबी) आज तक कर रहे है ॥देखे अशोक ने कलिंग में कहा , “सारी प्रजा मेरी संतान है, जिस प्रकार मैं अपनी संतान ऐहिक और कल्याण की कामना करता हूँ उसी प्रकार, अपनी प्रजा के ऐहिक और पारलौकिक कल्याण और सुख के लिए भी। जैसे एक माँ एक शिशु को एक कुशल धाय को सौंपकर निश्चिंत हो जाती है कि कुशल धाय संतान का पालन-पोषण करने में समर्थ है, उसी प्रकार मैंने भी अपनी प्रजा के सुख और कल्याण के लिए राजुकों की नियुक्ति की है ॥ *रजक(धोबी) आज भी सारे प्रजा को ना जाती ना धर्म देख कर अपने संतान कि तरह सेवा कर रहै ॥*🙏🏻....... किशन लाल🌹

Saturday, 5 September 2020

जाती कि उत्पत्ति सिद्धांत

*जातीवाद कैसे खत्म किया जा सकता है*?
आज हर बुद्धिजीवी जातीवाद खत्म करने कि बात करता है पर किसी के पास इसको खत्म करने कि सटिक ऊपाय नहि है. ... इस जातीवाद को खत्म करने का ऊपाय के रुप मे आरक्षण कार्ड खेला गया. .. क्या ये कारकर हो पाया? ??? जवाब है नहि ॥
..... आरक्षण को लेकर ऊल्टा हि हुआ जातीवाद नये रुप सर्वण वर्ग  एक जुट हो गये. ... यहाँ तक हुआ कि वर्ण सिद्धांत के सब से निचले वर्ग सुद्र (obc) भी अंत्यज वर्ग (sc) के खिलाफ हो गया ॥

लेकिन हमारा व्यक्तिगत अनुभव है कि जातीवाद खत्म तभी हो सकता है जब अंत्यज वर्ग जातीवाद के खिलाफ अपने जातीय इतिहास को मजबुत कर किया जा सकता है. .... ताकि कोई भी अपने जाती को लेकर हिन भावना नहि पालेगा ऊलट जाती को लेकर गर्व महसुस होगा ॥ भरी सभा मे अपने जाती का गुणगान, गॊैरव, का वखान कर सकते है. ... तब अन्य सर्वण समाज आप के इतिहास के सामने टिक नहि पायेगा. .. अपने मिथ्य साहित्य पर दंभ भरते सर्वण समाज का महल तास के पत्ते से बना महल आप के जातिय इतिहास के सामने भर-भरा के विखर जायेगा 🙏🏻
1) जातिय इतिहास से आप के बच्चो मे आत्म सम्मान, आत्म गोैरव कि भावना का विकास होगा ॥
2) आप के बच्चे जाती के कारण कुठा ग्रस्त नहि होगा ॥
3) आप के बच्चो का सार्वागिय विकास करेगा वो अपने ऎतिहासिक पुरुष से प्रेरणा पा कर उस कि तरह बनने कि सोचेगा ऒैर बनेगा
4) जाती तोडने के बजाय जाती मजबुत इस तरह से करने से सर्वण समाज का मिथ्य गॊैरव कांच के महल कि तरह चकना चुर हो जायेगा. .. बस एक पत्तथर  तवियत से तो उछाले ॥
5 ) .... जय धोबी वंश के कुल गॊैरव सम्राट अशोक कि जय 🌞󾴇स तरह के स्लोगन का निर्माण करे. ........ इतिहास लेखन हि अपने जातीय व्रचस्व को बनाये रखने के लिये किया जाता रहा है एक बार धोबी समाज करे. ...🙏🏻

🌞किशन कुमार लाल🌞

जाती व्यवस्था कि सच्चाई

*जाती व्यवस्था कि सच्चाई*

जातीयो कि उत्पत्ति के बारे सारे इतिहास कारो से हमारा मत भिन्न है ये इतिहास कार बहुत कुछ छिपा जाते है. ... सारे इतिहास कारो से सवाल है. .....
1) भारत अप्रवासीयो का देश है तो जितने शक, कुषाण, हुन, मंगोल,  सिथीन,  etc आये तो इन एक नस्लिय लोगो का समुह बना कर रहा तो जाती का निर्माण   धीरे- धीरे हुअा ये हमारा मत है. .... तो इतिहासकार इसे वेद, कुराण से क्यो खोजते है?
2 ) मध्य भारत का इतिहास लगातार रियासतो के जय - पराजय का रहा तो तो विजेता रहे नस्ल हारे हुए राजाऒ के सैनिक या उस राज्य मे रह रहे लोगो पर प्रतिवंध लगाये हि होगे. .... यहाॅ उत्तपादन ऒैर व्यवसाय का बटवारा हुआ हि होगा. .. तो मिथ्य के साहित्य वेद पुरान मे इस का सवाल क्यो ढुंढा जाता है. .?
3) ब्राह्मणो का समुह भी एक नस्लिय नहि है ऒैर ना इस मे रोटी बेटी संबंध होता है तो सारे जाती का ठिकरा इस के माथे पर क्यो फोडा जाता है. .?
4) जब एक हि नस्ल कि कई जातीय अलग अलग राज्यो मे विभीन्न जाती के रुप मे तो. ... नस्ल कि बाते नहि कर के जाती का जुमला क्यो फैलाया जाता है. ..?

Note- प्राचिन भारत मे अप्रवासी के आने से धीरे धीरे जाती का निर्माण हुआ. ... मध्य भारत मे टकराव के कारण उत्तपादन ऒैर व्यवास का बटवारा हुआ. . ऒैर नवीन भारत मे जाती प्रमाण पत्र निर्गत कर इसे रुढ बना दिया गया 🙏🏻 k k lal

Wednesday, 19 August 2020

खोखर गोत्र का पाया जाना धोबी जाती मे

*हमारे कई ऊपनामो मे एक ऊपनाम "खलिफा" भी है ॥ हम लोगो के टायटल रजक, बैठा, परदेशी होते हुए भी लोग धोबी बोलते थे उसी तरह खलिफा बोले जाने का भी रिवाज है ॥ जिस प्रकार हमारे टायटल -रजक, साफी पारसी भाषा के शब्द है वहि खलिफा भी अरबी शब्द है ॥

खलिफा सुन्नी समुदाय के लोगो का ऊपनाम है ॥

पंजाबी धोबी या पंजाब के धोबीयो के गोत्र खुखरान,  खत्तरी है ऒैर  अपने को राजा *खोखर* का वंशज मानते है ॥

खोखर ईराक के राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन का भी गोत्र था ॥ ..... १२०६ में आधुनिक पाकिस्तान के झेलम क्षेत्र में नदी के किनारे मुहम्मद ग़ोरी को खोखर नामक  क़बीले के लोगों ने अपने ऊपर हुए हमलों का बदला लेने के लिए मार डाला। और खोखर कबीला वोही है जिससे सद्दाम हुसैन भी आते थे | इसलिए यह कहना की धर्म का सम्बन्ध कबीलों से है सर्वथा गलत है | बल्कि आपकी पहचान धर्म से नहीं आपके गौरवशाली कबीले से होती है | स्थान बदले है नस्ले नहि बदला करती है ॥ वहि नाक, आॅख, कद काठी ॥ नस्ल हि सर्वोपरी है ॥..... note- सद्दाम भी सुन्नी मुसलमान हि थे ॥

Sunday, 2 August 2020

प्रीस्ट किंग एक रजक

प्रीस्ट किंग एक रजक. ....

पीस्ट किंग. .. सिन्धु सभ्यता मे मिले इस मुर्ति का नान पीस्ट किंग रखा गया. ..पता नहि क्यो? ...
1) हमारे यहाॅ एक किंवदती है *नाग मनी* कि  जो सांपो के सर पर होना बताया जाता है जो वास्तविकता मे मिथ्य बाते है ॥ पर इस मुर्ति मे सर पर बने गोल चक्र इस बात का सबुुत है कि इस स्थान पर कोई रत्ण,मणि रहा होगा जो अनेक व्यक्ति मे श्रेष्ठ, विशिष्ट  बनाता है ऒैर ये नागवंशी होने का प्रमाण है ॥ ...
2) संतसिरोमणी शब्द के आशय से पता चलता है वैसे संत जिस के सर मणी हो ॥. .... संत सिरोमणी शब्द को अगर मुर्त रुप देंगे तो यहि प्रिस्ट किंग कि मुर्ति बनेगी ॥ . ... शिरोमणी का अर्थ श्रेष्ट होता है जो रजक के टायटल शेटी  से मिलता है ॥
2) सिन्धु सभ्यता मे रंग के कपडे ऒैर कपडे रंगे जाने वाले गढ्ढे का प्रमाण मिला है इस लिये कुछ विद्वान सिन्धु सभ्यता का नाम शुद्धेरंजोदडो रखा है ॥. .
3) इस के तन पर जो चिवर है उस फुल अंकित है जो मजीठा के फुल को प्रद्रशित करता है जिस से प्राचीनकाल मे कपडे रंगे जाते थे ॥
4)प्रीस्ट किंग अर्थात पुरोहित राजा का सटिक नाम रजक होना चाहिये क्यो कि सिंधु सभ्यता के प्रशान व्यवस्था धम्म गुरु या पुरोहितो के हाथ मे थी ॥ सम्राट अशोक के रज्जुक संघ (रजक के ) के हाथो मे प्रशासन कि बाग डोर थी ॥. .......... ..
5)प्रो नवल वियोगी ने रजको को नाग वंश का माना है  जो नागो के सर मणि कि बात को सार्थक करता है . . उपरोक्त तिनो बातो पर ध्यान देने पर पाते है कि ये *रजक* कि प्रतिमा है. ..
..........................इस बात को सार्थक रजक का वेदो पुरानो मे अर्थ ढुढने पर पाते है कि रजक उसे कहा जाता था जो अनेक व्यक्ति मे चमकने वाला व्यक्ति जिस मे राजा होने का ऒैचित्य सिद्ध हो ऒैर जो सामरिक, बोद्धिक, भावनात्क गुणो के आधार पर चमकता है ॥. फारसी मे भी रजक का अर्थ रोजी, रोटी देने वाला बताया गया है.  *उपरोक्त तथ्य सावित करता है कि ये रजक कि प्रतिमा है ॥. .. k k lal

Wednesday, 17 June 2020

कविलाई जाती धोबी


धोबी एक कबिलाई संस्कृति वाला है ,, कबिलाई उसे कहा जाता हि जिसकी एक पृथक संस्कृति होती है ऒर धोबी कि पृथक संस्कृति रहि है ॥ धोबीया डांस,  धोबऊ गान,  धोबिया नृत्य,  धोबी पंचायत यहाँ तक हि नहि हमारी धोबीया *लिपी* भी है ॥ ऒर एक अहम हिस्सा कुल देवी देवता का होना हमे यह अहसान दिलाने के लिये काफी है कि हमारी दुनिया अलग है ॥ सारी खुबी मॊजुद है यह प्रर्दशित करने के लिये ॥ ठेठ कबिलाई धोबी है ॥ ?
ठेठ कबिलाई धोबी ...पहले कबिलाई का अर्थ समझे, ,, कबिलाई उसे कहा जाता हि जिसकी एक पृथक संस्कृति होती है ऒर धोबी कि पृथक संस्कृति रहि है ॥ धोबीया डांस,  धोबऊ गान,  धोबिया नृत्य,  धोबी पंचायत यहाँ तक हि नहि हमारी धोबीया *लिपी* भी है ॥ ऒर एक अहम हिस्सा कुल देवी देवता का होना हमे यह अहसान दिलाने के लिये काफि है कि हमारी दुनिया अलग है ॥ सारी खुबी मॊजुद है यह प्रर्दशित करने के लिये ॥ ठेठ कबिलाई धोबी है ॥ 🌹किशन लाल 🙏🏻

एक ठेठ कविलाई धोबी ---------  कविलाई कि खुबसुरती उसके सांस्कृति से दिखता है  जो जिस कविले का हिस्सा हो उस कविले मे हि सारी व्यवस्था होती है ॥ मनोरंजन के लिये धोबीया डांस, धोबऊ गान, गीत ॥ खेल कुद के लिये धोबी पछाड वाली कुस्ती,  न्याय के लिये धोबी पंचायत,  अपने पुर्वजो कि याद के लिये कुल देवी देवता, आपस मे हास्य के लिये धोबीया काॅमेडी etc, ,, इसकि लिस्ट लम्बी है जो इस दुनिया को रंगीन करने वाले रजको का स्थान सर्व प्रथम है ॥ आ अब लॊट चले ------- धोबी लाल

रजक कन्नोजिया महतो मेहता

कन्नौिजया, रजक, महतो, मेहता, मण्डल और मौर्य.... एक सागा नागवंश का
डा. नवल वियोगी के अनुसार तक्छक या नाग शासक बुद्ध के जीवन काल में रजक नाम से जाने जाते थे। प्राचीन भारतीय गणराज्यों की शासक संघ को म्हास्म्मत भी कहा जाता था। डा आर भंडारकर के अनुसार भी महासंघो की शासक समिति को रजक कहा जाता था। अलग अलग स्तर पर इसे मंडल समिति  तथा महत्त भी कहा जाता था।
महासम्मत का ही लघुत्तम रूप है महत्त होता है। मगधी े भाषा में त को तो से सम्बोिधत किया जाता है। और यही शब्द महतो और बाद में मेहता नाम से अलग जाती बना दी गयी । आज भी महतो  सरनेम यादव कोइरी कुर्मी तेली धोबी आदि  में लगाइ जाती है। कुछ ऐ सा ही मंडल टाईटिल के साथ है।
कर्नल जेम्स टाड ने राजपूतो के इतिहास में मौर्यों को तक्छक नाग कहा है। महावंश टीका पेज नंबर 7 और 9 में आप पढ़ सकते है। प्राकृत भाषा में महतो को महतान कहा जाता था।
जातियाँ बाद में बनी तो जाहिर सी बात है की वर्तमान समय की जातिया बड़े समूह  या वर्ग में थी। वो बड़ा समूह क्या था और वो कौन थे आप खुद ही डिसाइड करे।


क्यो, ,,, रजक, कन्नोजिया, महतो ,मेहता, मण्डल को सगा माना गया???????


महतो, मेहता, मण्डल = कोरी

कोरी जाती हि मण्डल ,मेहता टायटल प्रयोग मे लाते है. ......

कोरी शब्द कोरा से बना है कोरा का अर्थ * साफ *(clean)  होता है ।

तो स्पष्ट होता है साफ करने वाले (या साफ सुथारा कोरा कहलाने वाले ) का हि एक साखा कृषि कार्य मे लगा जो कालान्तर मे कोरी कहलाया ॥


धोबीयो के अन्य टायटल कि भाती * साफी* टायटल भी प्रसिद्ध है जो इस ओर इसारा करती है साफी का अर्थ हि साफ सुथरा अर्थात कोरा होता है जो कृषी कार्य मे लगे लोग कोरी कहलाये ॥ k k lal

अंत्यज

धोबि एक अन्त्यज जाति है ।
धोबि हिन्दु के चार र्वण
1) ब्राह्मन
2)क्षत्रिय
3) वैश्य
4) शुद्र
          किसि भि वर्ण मे नहि आता है ???
अन्त्यज जाति का अर्थ होता है षंकर प्रजाति ??
यानि दो वर्णो के मिलन से पेदा हुए संतान ??
  1) ब्राह्मन कन्या ऒर शुद्र पिता
या
  2) शुद्र कन्या ऒर ब्राह्मन पिता
                               के मिलन से पेदा हुए संतान को हि अन्त्यज जाति कहा जाता,है ???
ये अन्त्यज कि परिभासा मात्र है । मनु ने मनु स्म्रति मे धोबि को अन्त्यज जाति मे रखा है । धोबि ऒर ब्राह्मन मे कहि कोई संबन्द नहि है ।
महाभारत (शांति पर्व १०९.९) में अन्त्यजों के सैनिक होने का उल्लेख है। सरस्वती विलास के अनुसार रजकों की सात जातियां अन्त्यज में गिनी जाती हैं। वीरमित्रोदय का कहना है रजक आदि अठारह जातियां सामूहिक तौर पर अन्त्यज कहलाती हैं। मगर ये कहीं नहीं कहती कि अन्त्यज अछूत थे।

         किशन लाल (बंटि रजक )

सम्राट अशोक के वंशज

[16/05, 4:11 PM] Banty: धोबीयो के टायटल मुख्यतः,  बैठा,  बरेठा, रजक,  शेठी,  परदेशी, ये कहाँ से आये?  ये कहि ऒर से नहि सम्राट अशोक के संघो के नाम है व्युष्ट संघ, रज्जुक संघ,  प्रादेशिक संघ,  श्रेष्टी संघ,  जो अपने आप मे सम्राट अशोक है ॥ इन संघो मे सम्राट अशोक के बेटी. बेटे को न्युक्त किया गया था ॥ जिसके पुर्वज हम लोग है ॥ हमारे DNA मे सम्राट अशोक के DNA है ॥.. k k lal
[27/05, 6:43 AM] Banty: ... ....... *दिवाकर*..........  धोबीयो के अन्य प्रसिद्ध टायटल कि तरह *दिवाकर* टायटल प्रसिद्ध है ॥ आखीर धोबी दिवाकर टायटल क्यो प्राचीन काल से लगाते आ रहे है?  आईये जानते है इसके रहस्य को - प्राचीनकाल मे मध्य -मण्डल के भिक्खु *दिवाकर* कहे जाते थे ॥जो धम्म प्रचार के लिये चीन गये थे ॥ वहां उन्होने सुत्र ऒर अभिधर्म से संबंधित 18 ग्रंथो का चीनी मे अनुवाद किया ॥ इनमे ललितविस्तार का अनुवाद सर्वाधिक प्रसिद्ध है ॥, ,,,, दिवाकर मित्र मुख्यतः विन्ध्याटवी के प्रसिद्ध बोद्धाचार्य थे,  जिन्होने राज्यश्री ऒर सम्राट *हर्षवर्द्धन को बॊैद्ध धर्म की दीक्षा दी थी ॥ 🙏🏻 k k lal🌹

धोबी दर्शन

सुबह - सुबह धोबी र्दशन ..
सपने मे धोबी र्दशन . ... शुभ माना जाता है ये लोक-मान्यता भी है ऒर ज्योतीष के अनुसार भी शुभ माना गया. ....
......आखीर क्यो धोबी दर्शण प्रिय माना गया. ..?
......इसका आधार  इतिहास  के सब से महान सम्राट से जुडी हुई है जब भारत बोद्ध मय था. ...जैसा कि हमने अनेक साक्ष्यो से साबीत किया है कि धोबी समुदाय सम्राट अशोक के वास्तविक वंशजक है ॥ ऒैर अनेक साहित्य दंत कथाऒ मे सम्राट अशोक का उल्लेख "प्रियदर्शी" अर्थात "प्रिय दर्शन " माना गया है जिसके दर्शन प्रिय हो. ........रिवाज कभी मरते नहि. ....यहि कारण है धोबी दर्शन भारतीय रिवाज मे प्रिय माना गया, शुभ माना गया है ॥
................आप का अपना *किशन लाल *सम्राट अशोका लाल*

Monday, 15 June 2020

धोबी का कु्त्ता ना घर का ना घाट का

*धोबी का कुत्ता ना घर का ना घाट का*

पहले धोबी के सभी टायटल पर सोध कर पुर्ण सत्यापन कर चुंका हुॅ कि सम्राट अशोक के समय प्रशासनिक इकाई के अभिन्न अंग धोबी जाती हि था ॥

आईये इस से आगे जानने कि कोशीस करते है मध्यकाल मे किस शासक वर्ग से संघर्षरत् था हमारा समाज. ............. इसी कडि को उजागर करने के लिये एक संदर्भ पर ध्यान देना होगा. ...
"धोबी का कुतका ना घर का ना घाट का"
ये उक्ति तब बनी होगी जब तुर्को ने हम पर पुर्ण विजय पा ली ॥ क्यो कि कुतका एक तुर्की शब्द है जो तुर्क लोगो द्वारा व्यवहार किया जाता था ॥
कुतका का अर्थ "डण्ड" (लाठी) होता है. ... यानी सहि अर्थो मे ये "धोबी का डण्डा ना घर का ना घाट का" होगा. .......... चलिये जान्ने कि कोशीस करते है तुर्को ने ऎसा क्यो कहा होगा ॥ इसके लिये दो शब्दो पर गोैर करना होगा ॥ डण्ड ऒैर घाट पर. ......

डण्ड या डण्डा :-  प्राचीनकाल मे साफा - पगडी ऒैर दण्ड यानी छडी समाज के प्रभावशाली लोगो का पसंदीदा प्रतीक चिह्न थे ॥ राजा (सम्राट अशोक) ऒैर उसके पदाधिकारी (रज्जुक, व्युष्ट, श्रेष्ठी,  प्रादेशिक) के हाथ हमेशा दण्ड रहता था जो उसके न्याय करने ऒैर सजा देने के अधिकार होने का प्रतीक था ॥ (आज भी जिलो व तहसीलो के प्रशासको के लिए दण्डाधिकारी शब्द हि प्रयुक्त होता है) साथ हि राजनिती शास्त्र को दण्ड निती हि कहते है ॥
बुद्ध ने अपने संघ के भिक्कु को दण्ड रखने का अधिकार दिया था जो भिक्कु के आत्मरक्षा के प्रयोग मे आता था ॥ यानी डण्ड बुद्ध के धम्म (जिवन जिने कि कला) का अभीन्न अंग था ॥ जो भिख्खु के साथ अशोक के पदाधिकारी का धम्म प्रचार प्रसार का  प्रतिक चिन्ह बन गया था ॥ इसके उपरान्त बोद्ध के धम्म डण्ड को आर्यो ने  धर्म बना डाला. ..........
आर्यो ने धर्मशास्त्र मे डण्ड का महत्व इतना अधिक दिया कि मनुस्मृति में तो डंड को देवता के रूप में बताया गया है। एक श्लोक है-
दण्डः शास्ति प्रजाः सर्वा दण्ड एवाभिरक्षति।
दण्डः सुप्तेषु जागर्ति दण्डं धर्मं विदुर्बुधाः।।
( दंड ही शासन करता है। दंड ही रक्षा करता है। जब सब सोते रहते हैं तो दंड ही जागता है। बुद्धिमानों ने दंड को ही धर्म कहा है।)
यानी जो बोद्ध का धम्म था वहि आर्यो के लिये धर्म बना ॥ यानी डण्ड को धर्म माना ॥ डण्ड का आर्थ धर्म हुआ ॥
घाट:- ये घाट को स्थान करने वाला या कपडे धोने के घाट नहि हो कर नदी तट की प्राचीन बस्तियों के साथ जुड़े घाट शब्दों पर गौर करें मसलन-ग्वारीघाट, बुदनीघाट, बेलाघाट, कालीघाट जिनमें स्नान का भाव न वस्ती, समाज था ॥

अब पुनः विचार करे "धोबी का डण्डा ना घर का ना घाट का"

उपरोक्त उदाहरणो मे डण्डा (धर्म अर्थात धम्म ), घाट (वस्ती, ग्राम, गाॅव) कर के देखे. ........

"धोबी का धम्म ना घर का ना बस्ती का" होगा. ...... क्यो कि मध्य काल मे भी अंतिम संघर्ष तुर्को से हुआ ऒैर तुर्को ने (1) बख्तियार खिलजी एक तुर्क ने नालन्दा जलाया था ॥
2) विक्रमशीला विश्व विधालय को भी तुर्कि के बख्तियार खिलजी ने हि जलाया था ॥

इस प्रकार हम पाते है कि तुर्को के द्वारा हमारा पुर्णतः विनाश हुआ जो हमारा धम्म ना घर मे रह पाया ना समाज मे 🙏🏻
🌹किशन कुमार लाल🌹भागलपुर⭐🌙

प्राचीन धुलाई तकनिक

*भारत कि प्राचिन धुलाई तकनिक ऒैर रसायन*

भारत के सिन्धु सभ्यता मे धुलाई ऒैर रंगाई के प्रमाण मॊैजुद है ॥ आप अंदाजा लगाई कि आज 5-6 हजार साल पहले कोरा (सफेद) कपडो को किस रसायण से दुध जैसी सफेद (उजला) किया जाता था ?.......

उस परिवेश मे ना साबुन था ऒैर ना शर्फ, सोडा इत्यादी रसायण. ....

चलिये आप को उस समय के महान रसायण शास्त्र के प्रकाण्ड वैज्ञानिक समुदाय आज के धोबी जाती द्वारा उपयोग मे लाये जाने वाले प्राकृतिक (नेचुरल) रसायण से अवगत कराता हुँ  जो कपडो को सफेद किये जाने के साथ *नो साईड इफैक्ट*  अर्थात धुले हुए कपडो से कोई किसी प्रकार कि चर्म बिमारी होती थी ॥

धोबी समाज द्वारा उपयोग मे लाये  जाने वाला मिश्रण निम्न है
1) रेह मिट्टी (नोनी मिट्टी)
2) केले के पत्ते का जला राख
3) धोडे कि लिद्दी या बकरी का  भेनाडी  (मल)
4) गाय का मुत्र

उपरोक्त मिश्रण को मिला कर  तैयार करने के उपरांत इस मिश्रण  मे कपडे को डाल दिया जाता था. ...कुछ समय के बाद इसे साफ पानी मे धो लिया जाता था ॥ आप को यह जान के आर्शचर्य होगा कि आज के रसायनिक धुलाई से ज्यादा साफ कपडे  इस आॅगेनि मिश्रण से होते है ॥

🌹किशन कुमार लाल🌹धोबी लाल🌹🙏🏻