Monday, 16 May 2016

शंकर धोबी (क्रांतिकारी)

रजक गॊरव(क्रांतिकारी)

           🌹 शंकर धोबी🌹

गुजरात प्रान्त के सन् 1942 के "अंग्रेजो भारत छोड़ो' आन्दोलन में अपनी छाती पर दमनकारी पुलिस दल की गोली झेलकर शहीद होने वाले 13 वर्षीय किशोर शहीद थे शंकर धोबी । सन् 42 के आन्दोलन काल में पढ़ाई-लिखाई छोड़कर ये भी "करो या मरो' आन्दोलन में बड़े जोश के साथ भाग ले रहे थे। उसी बीच एक दिन अगस्त महीने में पुलिस दल ने इन्हें घेरे में लेकर जब इन पर गोली चलाई तो उस दिन ये अपने ही ग्राम डाकोर में घायल होकर गिर गए और शहीद हो गए। ये अभी छात्र थे और इनके यहां कपड़े धोने (धोबी का) का काम होता था। ये डाकोर, जिला-कैरा के निवासी श्री डाह्रा धोबी के पुत्र थे। 1928 में जन्मे थे और सन् 1942 के अगस्त महीने में देश की स्वतंत्रता के लिए सक्रिय रहते हुए बलिदान हो गए।

🙏🏻जय संत गाडगे🙏🏻

किशन कुमार लाल


Sunday, 15 May 2016

सोमा धोबीन

रजक देवी सोमा धोबीन

मौनी अमावस्या

अनुयायी हिंदू
उद्देश्य  इस व्रत को मौन धारण करके समापन करने वाले को मुनि पद की प्राप्ति होती है
तिथि माघ मास की अमावस्या
उत्सव  इस दिन मौन रहकर यमुना या गंगा स्नान करना चाहिए।
अन्य जानकारी  इन दिनों में पृथ्वी के किसी-न-किसी भाग में सूर्य या चंद्रमा को ग्रहण हो सकता है।
माघ मास की अमावस्या को मौनी अमावस्या कहते हैं। इस दिन मौन रहना चाहिए। मुनि शब्द से ही मौनी की उत्पत्ति हुई है। इसलिए इस व्रत को मौन धारण करके समापन करने वाले को मुनि पद की प्राप्ति होती है। इस दिन मौन रहकर यमुना या गंगा स्नान करना चाहिए। यदि यह अमावस्या सोमवार के दिन हो तो इसका महत्त्व और भी अधिक बढ़ जाता है। माघ मास के स्नान का सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण पर्व अमावस्या ही है। माघ मास की अमावस्या और पूर्णिमा दोनों ही तिथियां पर्व हैं। इन दिनों में पृथ्वी के किसी-न-किसी भाग में सूर्य या चंद्रमा को ग्रहण हो सकता है। ऐसा विचार कर धर्मज्ञ-मनुष्य प्रत्येक अमावस्या और पूर्णिमा को स्नान दानादि पुण्य कर्म किया करते हैं।
मौनी अमावस्या की कथा

कांचीपुरी में देवस्वामी नामक एक ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी का नाम धनवती था। उनके सात पुत्र तथा एक पुत्री थी। पुत्री का नाम गुणवती था। ब्राह्मण ने सातों पुत्रों को विवाह करके बेटी के लिए वर खोजने अपने सबसे बड़े पुत्र को भेजा। उसी दौरान किसी पण्डित ने पुत्री की जन्मकुण्डली देखी और बताया-'सप्तपदी होते-होते यह कन्या विधवा हो जाएगी।' तब उस ब्राह्मण ने पण्डित से पूछा- 'पुत्री के इस वैधव्य दोष का निवारण कैसे होगा?' पंडित ने बताया-' सोमा का पूजन करने से वैधव्य दोष दूर होगा।' फिर सोमा का परिचय देते हुए उसने बताया-' वह एक धोबिन है। उसका निवास स्थान सिंहल द्वीप है। उसे जैसे-तैसे प्रसन्न करो और गुणवती के विवाह से पूर्व उसे यहाँ बुला लो।' तब देवस्वामी का सबसे छोटा लड़का बहन को अपने साथ लेकर सिंहल द्वीप जाने के लिए सागर तट पर चला गया। सागर पार करने की चिंता में दोनों एक वृक्ष की छाया में बैठ गए। उस पेड़ पर एक घोंसले में गिद्ध का परिवार रहता था। उस समय घोंसले में सिर्फ़ गिद्ध के बच्चे थे। गिद्ध के बच्चे भाई-बहन के क्रिया-कलापों को देख रहे थे। सायंकाल के समय उन बच्चों (गिद्ध के बच्चों) की मां आई तो उन्होंने भोजन नहीं किया। वे मां से बोले- 'नीचे दो प्राणी सुबह से भूखे-प्यासे बैठे हैं। जब तक वे कुछ नहीं खा लेते, तब तक हम भी कुछ नहीं खाएंगे।' तब दया और ममता के वशीभूत गिद्ध माता उनके पास आई और बोली- 'मैंने आपकी इच्छाओं को जान लिया है। इस वन में जो भी फल-फूल कंद-मूल मिलेगा, मैं ले आती हूं। आप भोजन कर लीजिए। मैं प्रात:काल आपको सागर पार कराकर सिंहल द्वीप की सीमा के पास पहुंचा दूंगी।' और वे दोनों भाई-बहन माता की सहायता से सोमा के यहाँ जा पहुंचे। वे नित्य प्रात: उठकर सोमा का घर झाड़कर लीप देते थे।
एक दिन सोमा ने अपनी बहुओं से पूछा-'हमारे घर कौन बुहारता है, कौन लीपता-पोतता है?' सबने कहा-'हमारे सिवाय और कौन बाहर से इस काम को करने आएगा?' किंतु सोमा को उनकी बातों पर विश्वास नहीं हुआ। एक दिन उसने रहस्य जानना चाहा। वह सारी रात जागी और सबकुछ प्रत्यक्ष देखकर जान गई। सोमा का उन बहन-भाई से वार्तालाप हुआ। भाई ने सोमा को बहन संबंधी सारी बात बता दी। सोमा ने उनकी श्रम-साधना तथा सेवा से प्रसन्न होकर उचित समय पर उनके घर पहुंचने का वचन देकर कन्या के वैधव्य दोष निवारण का आश्वासन दे दिया। मगर भाई ने उससे अपने साथ चलने का आग्रह किया। आग्रह करने पर सोमा उनके साथ चल दी। चलते समय सोमा ने बहुओं से कहा-'मेरी अनुपस्थिति में यदि किसी का देहान्त हो जाए तो उसके शरीर को नष्ट मत करना। मेरा इन्तजार करना।' और फिर सोमा बहन-भाई के साथ कांचीपुरी पहुंच गई। दूसरे दिन गुणवती के विवाह का कार्यक्रम तय हो गया। सप्तपदी होते ही उसका पति मर गया। सोमा ने तुरन्त अपने संचित पुण्यों का फल गुणवती को प्रदान कर दिया। तुरन्त ही उसका पति जीवित हो उठा। सोमा उन्हें आशीर्वाद देकर अपने घर चली गई। उधर गुणवती को पुण्य-फल देने से सोमा के पुत्र, जामाता तथा पति की मृत्यु हो गई। सोमा ने पुण्य फल संचित करने के लिए मार्ग में अश्वत्थ (पीपल) वृक्ष की छाया में विष्णुजी का पूजन करके 108 परिक्रमाएं कीं। इसके पूर्ण होने पर उसके परिवार के मृतक जन जीवित हो उठे। निष्काम भाव से सेवा का फल मधुर होता है, इस व्रत का यही लक्ष्य है।

जय संत गाडगे 😃
किशन कुमार लाल


रजक राजनिति part-2

रजक समाज का बेडा गर्त क्यो

रजक विद्यार्थियों के द्वारा राजनीति मे हिस्सेदारी को ले कर समाज के प्रबुद्ध एवं वरिष्ठ लोगों द्वारा प्रश्न उठाये जाते रहे है। उनका तर्क रहा है कि विद्यार्थी जिनका कि मूल उद्देश्य विद्या अध्यन करना है, यदि राजनीति मे सक्रीय रूप से भाग लेते है, तो क्या वे अपने मूल उद्देश्य से भटक नहीं जायेंगे ? ओर क्या यह कार्य उनके भविष्य निर्माण मे बाधक नहीं होगा ?

यह सही है कि विद्यार्थियों का मुख्य उद्देश्य पढाई करना है। उन्हें अपना पुरा ध्यान उस ओर लगाना चाहिऐ, लेकिन सामाजिक एवम राष्ट्रिय परिस्तिथियों का ज्ञान ओर उसके सुधार के उपाय सोचने की योग्यता पैदा करना भी शिक्षा मे शामिल होना चाहिऐ, ताकी वे राष्ट्रिय एवं सामाजिक समस्याओं के समाधान मे अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर सके। क्यूंकि ऐसी शिक्षा व्यवस्था जो विद्यार्थियों को देश की संरचना निमार्ण मे कोई भागीदारी नहीं देती- उन्हें व्यवहारिक रूप से अकर्मण्य बनाती है। उसे हम पूर्णत: सार्थक नहीं कह सकते है। वैसे भी एक प्रजातांत्रिक राष्ट्र मे प्रत्येक नागरिक प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से राजनीति तथा राष्ट्रिय कार्यप्रणाली मेँ भागीदारी निभाता है ओर ऐसे मेँ राजीव गांधी द्वारा प्रदत्त 18 वर्ष के व्यस्क मताधिकार से छात्रों की भागीदारी तो स्वत: ही स्पष्ट हो जाती है।
                 अत: उपरोक्त परिस्तिथियों मे रजक राष्ट्रिय नेतृत्व एवं रजक समाज के प्रबुद्ध एवं वरिष्ट लोगो का दायित्व है की वे छात्रों मे, जिन्हे कल देश की बागडोर हर स्तर पर अपने हाथों मे लेनी है- नेतृत्व क्षमता पैदा करें, उन्हें उनके राष्ट्रिय कर्त्तव्यों के प्रति जागरूक बनायें, उन्हें सांप्रदायिक व प्रथक्तावादी ताकतों के विरुद्ध एकजुट करें, उन्हें लोकतांत्रिक कार्यप्रणाली से अवगत कराएँ ओर साथ ही राष्ट्रिय समस्याओं के समाधान मे उनकी भागीदारी सुनिश्चित करें। यदि वे ऐसा नहीं करते है तो वे ना सिर्फ राष्ट्र ऒर रजक समाह के साथ विश्वासघात करेंगे, बल्कि यह देश की भावी पीढी के साथ भी घोर अन्याय होगा। क्योंकी ऐसा ना करने पर हि रजक समाज मे एक ऐसी नेतृत्व शून्यता पैदा हुई जो रजक समाज को अनजाने अंधकारमय भविष्य की ओर धकेल देगी।

इसके अतिरिक्त छात्रों को भी चाहिऐ की वे पढे, जरुर पढे, परंतु साथ ही राष्ट्रिय गतिविधियों मे भी सक्रीय भागीदारी निभाए ओर अधिकार तथा जिम्मेदारियों को समझते हुये राष्ट्रिय परिपेक्ष्य मे जब, जहाँ, जितनी आवश्यकता हो अपना संपूर्ण योगदान दे। ऐसा करने पर ही वो रजक समाज को उन्नति के चरमोत्कर्ष ले जा सकने मे सफल हो सकेंगे तथा उस राष्ट्र का निर्माण कर सकेंगे जो बाबा संत गाडगे के सपनो का राष्ट्र था।

NOTE :- IAS , IPS अगर तुलसि का पॊधा है तो  एक नेता बट ब्रक्ष है

जय संत गाडगे

             किशन लाल


रजक राजनिति part-1

रजक एक जुटता कि राजनिति

एक समय था जब राज्य सत्ता प्राप्ति के लिए सिर काटने पड़ते थे और कटवाने पड़ते थे । बिना हिंसा किऎ न तो राज्य सत्ता मिलता था और ना ही सुरक्षित रहता था । पर आज जमाना बदल गया है आज सत्ता प्राप्ति के लिए सिर कटवाने नहीं मात्र गिनवाने पड़ते है ।यही कारण है कि जब सिर कटवाने पर सत्ता मिला करती थी उस वक्त सत्ता से दूर रहने वाली रजक जातियां जो सिर कटवाकर सत्ता हासिल करने के बजाय घर में बैठकर या सत्ताधारियों की सेवा करना सत्ता प्राप्ति से ज्यादा महत्वपूर्ण समझती थी । वे आज सिर गिनवाकर भी सत्ता में भागीदार नहि बन पाई है । क्योंकि लोकतंत्र में सिर गिनवाने के महत्व को उन्होंने बखूबी समझ नहि पाये है, पर सिर कटवाकर एवं छल कटप निति कर सत्ता हासिल करने वाली जातिया "स्वर्ण" लोकतांत्रिक प्रणाली में भि सिर गिनवाकर आसानी से सत्ता प्राप्त करने जैसे आसान मर्म को समझ  पाई और आज बड़ी आसानी से मिलने वाली सत्ता पे काविज है ।

यदि आपको मेरी इस बात पर कि -"सत्ता सिर गिनवाने पर मिलती है" भरोसा ना हो तो निम्न उदाहरण आपके सामने है जिन्हें पढकर आपको भी मेरी यह बात सही लगेगी कि -आजकल सत्ता सिर्फ गिनवाने यानी लामबंद होकर वोट देने पर ही हासिल होती है-
1- आज जो स्वर्ण जाति देश के हर क्षेत्र मे सत्ता  मे बहुतायत   मात्रा  मे मोजुद है उससे देश का हर वर्ग दुखी है पर इसे हटाने का कार्य तो सरकार सोच भी नहि सकती है । चूँकि स्वर्ण लामबंद होकर उसी राजनैतिक दल के पक्ष में सिर गिनवाते है मतलब वोट देते है जो राजनैतिक दल उनके जातिय हितों की रक्षा करें । अब जो दल या सरकार ये स्वर्ण अघिकार बंद करने की बात सोचते है तो डर जाते कि ऐसा करने से अगडि (स्वर्ण) जातिया नाराज हो जायेंगे और हमें तो वोट देंगे नहीं बदले में विपक्ष को वोट दे देंगे इससे वे सत्ता से बेदखल हो जायेंगे । अब ऐसा रिस्क कौन ले ?
मतलब साफ जाहिर है स्वर्णो ने लोकतंत्र में सिर गिनवाने वाली महिमा को बड़ी अच्छी तरह समझा और उसका फायदा उठा राज कर रहे है । आज हर सरकारी नौकरियों में  छल कपट निति के तहत उनके लिए तो दरवाजे खुलें ही है चाहे उनमे योग्यता हो या ना हों । और यही नहीं कुछ स्वघोषित स्वर्ण नेता चाहे किसी दल की सरकार हो उसमे मंत्री पद पा ही जाते है महज इस योग्यता पर कि वे एकजुट है|

2-अब मुसलमानों का उदाहरण ले लीजिए । वे भी लामबंद होकर किसी एक के पक्ष में चुनावों में सिर गिनवाते है और जिस दल को उनके वोट चाहिए वो सरकार बनने के बाद उनके तुष्टिकरण करने का पुरा ध्यान रखता है । इसका उदाहरण आप आजादी के बाद से ही देख रहे है कि किस तरह कांग्रेस सरकार इनका तुष्टीकरण करती आ रही है यही नहीं कई मामले ऐसे भी आये है कि कांग्रेस ने इस वोट बैंक की खातिर देशहित को भी परे किया है । इनके तुष्टीकरण की खातिर देश के कानून तक बदलें गए है । ताजा उदाहरण आप मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी का देख सकते है कि किस तरह वह मुस्लिम वोट बैंक के लिए उनका तुष्टीकरण करने में लगी है ।
कहने का मतलब साफ है मुस्लमान भारत में अल्पसंख्यक है फिर भी वे सरकारों व राजनैतिक दलों से जो चाहे पा लेते है, किसी भी सरकार को झुकाने का माद्दा रखते है वह भी सिर्फ सिर गिनवाने की कला के पीछे ।
मतलब साफ़ है मुसलमानों ने भी लोकतंत्र की इस सिर गिनवाने वाली खास बात का मर्म समझ लिया और वे कम होने के बावजूद वो सब पा जाते है, जो वे चाहते है कोई भी दल उनकी उपेक्षा नहीं कर सकता ।

3- जाटों ने भी लोकतंत्र की इस सिर गिनवाने वाली बात को बड़ी बखूबी समझा और चुनावों में लामबंद हो वोट डालने शुरू किये उनके थोक वोट देखकर लगभग सभी राजनैतिक दलों ने चुनावों में जाट प्रत्याशी उतारने शुरू किये और वे अपने स्वजातीय द्वारा लामबंद होकर दिए वोटों से जीत कर सत्ता के भागीदार बने । यही नहीं राजस्थान के जाटों ने अपनी इसी लामबंदी का फायदा आरक्षण की सुविधा पाने में किया । उनके वोट बैंक को देखते हुए सरकार ने उनकी आरक्षण में शामिल करने की मांग मान ली । अब राजस्थान में कोई सरकारी कार्यालय ऐसा नहीं जहाँ जाट कर्मचारी नहीं ।
और जाटों ने ये सब पाया लोकतंत्र में सत्ता के लिए सिर गिनवाने वाले आसान उपाय को अपनाकर ।तो रजक भाइयो उपरोक्त उदाहरण पढकर जो आपके सामने प्रत्यक्ष भी है आपको भी लोकतंत्र में सिर गिनवाकर सत्ता हासिल करने की महिमा के बारे में समझ आया होगा । अब जब सिर्फ सिर गिनवाने से सत्ता हासिल हो सकती है तो सिर कटवाने की बातें करने की क्या जरुरत ?

लोकतंत्र के इस मर्म को समझिए और लामबंद हो एक जबरदस्त वोट बैंक में अपने आपको तब्दील कर दीजिए कि सारे राजनैतिक दल आपके आगे पीछे हाथ जोड़कर भागे फिरें और आप उनसे देशहित में जो करवाना हो वो अपनी मर्जी से करवाएं । पर इसके लिए जरुरी है  "रजक एकता "। हम सब एक होकर, अपनी एकता के बल पर फिर अपना खोया गौरव पा सकते है । हमें यह एकता स्व-कल्याण और देशहित को ध्यान में रखकर ही लिखा है ॥

जय संत गाडगे
         किशन लाल



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Thursday, 28 April 2016

सियोराम धोबी (रामायण)

रामायण का धोबी

रामायण काल मे एक प्रसंग आता है, कि सियोराम नाम का एक धोबी भगवान श्रीराम के दरवार मे प्रमुख सलाहकार के रुप मे सेवा कर रहा था ॥ श्रीराम के राजधराने का सच्चा सत्यवादी ईमानदार वफादार व्यक्ति के रुप मे प्रसिद्ध था ॥ दरबारी कामकाज एवं अंतराज्यीय समस्याऒ पर तथा गंभीर विषयो पर सियोराम धोबी की सलाह ली जाती थी , इसी कारण वह रामदरवार मे घनिष्ट बन गया था , इससे राज्य के अन्य दरवारी सियोराम धोबी से ईष्या रखते थे ,एक दिन सियोराम की धर्मपत्नी से कुछ मुटाव हो गया इस कारण वह दिन ओर रात अज्ञात स्थान पर रही ऒर सुबह होते ही जब वह अपने घर आयी तो सियोराम ने उसको डांट फटकार कर घर से ही बाहर भगा दिया ऒर साहसपुर्वक कडक कर यह बोला कि मै वह राम नही हूँ जिन्होने छः माह तक रावण के घर रहने वाली सीता को अपने पास पुनः रख लिया , दुर्भाग्य से यह प्रसंग दुर्मुख नाम के एक प्रतिद्वदी व्यक्ति ने सब सुन लिया ऒर अच्छा सुअवसर पाकर इस घटना को श्रीराम को विस्तार पूर्वक सुना दिया ऒर सियोराम के प्रति श्रीराम का मन खिन्न कर विचलित लर दिया ॥ लेकिन सियोराम धोबी चरित्रवान ,कटुसत्यवादी , होने के नाते साहसपुर्वक अपनी बात को श्रीराम के सामने निडरतापूर्वक रख दी , इसी  कारन से ऎसा कहा जाता है कि श्रीराम ने सीता को पुनः बनवास भेज दिया था  ॥
      जय संत गाडगे



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ढुंढा धोबी(महाभारत)

कृष्ण गुरु ढुंढा धोबी

ढुढा धोबी का वर्णन द्वापर युग के काल मे महाभारत भगवत पुराण मे ऎसा प्रसंग मिलता है ऒर इसके बारे मे कहा गया कि भगवान श्रीक्रष्ण अपनी सेना के साथ आक्रमण करके कंस पर विजय प्राप्त करने गये तो पहले महल के पूर्व ढुढा धोबी से भेट हो गयी ॥ उसके पास कंस राजा के राजमहल के पवित्र व सुन्दर वस्त्रो की गठरियाँ थी जिसको पाने के लिये श्रीक्रष्ण ने अपनी व ग्वाल बालो से कहा कि उसके पास से कपडो की पोटलियाँ ले लो ऒर वस्त्र धारण करके ही नगर मे प्रवेश करे ॥ लेकिन इसके विपरीत ढूढा धोबी ने वस्त्र देने से साफ इन्कार कर दिया ऒर उसने कहा कि मै कंस का धोबी हूँ ऒर उनका नमक खाया हूँ मै गद्दारी व नमक हरामी नही कर सकता हुँ ॥ इस पर क्रष्ण की सेना व ग्वालवाल सब क्रोधित हो गये ऒर उस पर टूट पडे जिससे घमासान युद्ध हुआ ॥ यिद्ध मे ग्वालबाल भागते नजर आये फिर भी ढूढा धोबी वस्त्र देने को सहमत नही हुआ ॥ इस पर क्रष्ण क्रोधीत होकर गुस्से मे ढुंढा धोबी के दोनो हाथ काट दिये ॥ 󾭚 तब जाकर वह सुन्दर ऒर पवित्र वस्रो को पोटली ग्वाल वालो के ऒर सेना को उपयोगी हो सका ॥ यह द्रश्य देख अपने निर्दोष पति के हाथ कटे हुये पाकर क्रष्ण को श्राप दे दी ॥ श्राप के पश्चात क्रष्ण ने ढुढा की पत्तनी से क्षमा याचना करके माफी मागने लगे , मुझे क्षमा करो क्रोध मे विवेक को भुलकर मैने यह कदाचरन किया है , मै अभी तुम्हारे पति को पुनः ठीक कर देता हुँ तुम अपना श्राप वापिस ले लो ॥ ऎसा हुआ भी  कुछ समय पश्चात श्रीक्रष्ण ढुंढा धोबी से घनिष्ट मित्रता कर उससे मलयुद्ध के दाँव पेच सीखे क्योकि वह मलयुद्ध सिक्षा मे धोबी पछाड दाव कुशलता से  श्रीक्रष्ण ने सीख लिया तब जाकर क्रष्ण ने स्वय अपने मामा कंस को मल युद्ध मे धोबीया पछाड दाँव पेच से चारो खाना चित कर दिया ऒर कंस का वध कर विजय प्रप्त की ॥ ...... *"इस दुनिया में जब तक मेरी पूजा होती रहेंगी, तब तक तेरी पूजा होती रहेंगी..! यह आशीर्वाद था परमात्मा श्रीकृष्ण का रजक ठूंठा जी को..! आज भी जन्माष्ठमी पर मथुरा में पट के रूप में पहले रजकवंश की पूजा होती है..!*

   जय संत गाडगे



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सियोराम धोबी

󾁁गणतंत्र के समुह नायक सियोराम धोबी 󾁁

गणतंत्र यानी लोगो का तंत्र दुसरे अर्थ मे लोगो का कानुन ॥ कहते है कि लोकतंत्र विदेशो से आयी विचारधारा है ॥ जिसे भीमराव आम्बेडकर ने 26 जनवरी 1950 को  अंग्रेजो के सम्मुख लागु करवाया ॥ ऒर देश गणतंत्र हुआ ॥
               कहना ना होगा कि अंग्रजो के आगमन के पहले यहा राज तंत्र था ऒर जितने भी विद्रोह हुए राजस्ता कि प्राप्ति के लिये हि हुए ॥  केवल 600 ईपू त्रेतायुग मे हि सियोराम धोबी ने राजा का विद्रोह किया ॥यह विद्रोह सत्ता प्राप्ती का नहि था यह विद्रोह रजतंत्र के एकाधीकार न्याय प्रक्रिया का था ॥  यह प्रसंग रमायण के एक प्रसंग से आता है जिसमे राम लंका विजय हो कर आये साथ मे छः महिने लंका मे रही  गर्ववती पत्तनी सीता को वापस. लाये  ॥ तो अयोध्या के निवासीयो के बीच कानो कान ये बाते फैलने लगी कि सीता लंका से गर्ववती हो कर लॊटी है ॥ राम कि निन्दा चारो ऒर होने लगी ॥लेकिन किसी ने राजा के सम्मुख मुह खोलने कि हिम्मत नहि हुई ॥ इसी बीच ,एक दिन सियोराम की धर्मपत्नी से कुछ मुटाव हो गया इस कारण वह दिन ओर रात अज्ञात स्थान पर रही ऒर सुबह होते ही जब वह अपने घर आयी तो सियोराम ने उसको डांट फटकार कर घर से ही बाहर भगा दिया ऒर साहसपुर्वक कडक कर यह बोला कि मै वह राम नही हूँ जिन्होने छः माह तक रावण के घर रहने वाली सीता को अपने पास पुनः रख लिया , दुर्भाग्य से यह प्रसंग दुर्मुख नाम के एक  व्यक्ति ने सब सुन लिया ऒर अच्छा सुअवसर पाकर इस घटना को श्रीराम को विस्तार पूर्वक सुना दिया ऒर सियोराम के प्रति श्रीराम का मन खिन्न कर विचलित कर दिया ॥ लेकिन सियोराम धोबी चरित्रवान ,कटुसत्यवादी , होने के नाते साहसपुर्वक अयोध्यावासी के बीच हो रहि निन्दा ऒर अपनी बात को श्रीराम के सामने निडरतापूर्वक रख दी  ॥
                       इस प्रकार धोबी ने श्रीराम को गण (लोग) तंत्र का पाठ सिखाया ॥
राम को अयोध्यावासी के बीच अपनी प्रतिष्टा ,लाज , कुल कि मर्यादा, प्रजा द्वारा जगहसाई ऒर सीयोराम धोबी   के आरोपो का भान हुआ. ऒर लोकतंत्र कें समूह-नायक धोबी के आक्षेप पर राम भी सीता को त्यागने पर विवश हो गए थे. ॥
                      इस प्रकार हम देखते है कि लोकतंत्र कि अवधारना 600 ईपू सियोराम धोबी द्वारा दिया गया ॥

🇮󾓭Happy repubic day 🇮󾓭

󾍛जय संत गाडगे 󾍛
          󾁁किशन कुमार लाल󾁁े


Wednesday, 27 April 2016

नत्थु धोबी(क्रांतिकारी)

,,,,रजक गॊरव ,,,,,,,
भारतीय आजादी के इतिहास को दर्शाने के मौके पर देश के इतिहासकार और लेखक धोबी वीरो की कुरबानी एवं उनकी वीर गाथाओं को उजागर करने की बजाय उस पर पर्दा डालने का काम करते रहे हैं. इन वीरो की सूची बहुत लंबी है और उनका इतिहास भी बहुत गौरवशाली रहा है. लेकिन भारतीय इतिहास को पढ़ने से यह स्पष्ट हो जाता है कि देश के दलितों व आदिवासियों के गौरवशाली इतिहास को रेखांकित करते समय गैर दलित लेखकों के शब्द चुक जाते हैं या कहें की इनकी कलम की स्याही सूख जाती है. अब तक इनके द्वारा लिखित झूठ एवं भ्रामक तथ्य कदम-कदम पर पकड़ा जाता रहा है.

जलियांवाला बाग घटना की आज भी बड़े जोर-शोर से चर्चा की जाती है और प्रत्येक वर्ष इस घटना को याद किया जाता है. लेकिन सत्य तथ्य को दर्शाने से गैर-दलित बंगले झांकने लगते हैं या फिर चुप्पी साध कर रह जाते हैं. ये आज भी जानबूझ कर सच्चाई को सामने लाना नहीं चाहते, क्योंकि उस जलियांवाला बाग में ब्रिटिश हुकूमत की आज्ञा का उल्लंघन करने वाले गैर दलित नहीं थे. उस दिन यानि 13 अप्रैल 1919 को आजादी के दीवानों की सभा बुलाने वाला महान क्रांतिकारी दलित योद्धा नत्थू धोबी था. उस दिन उस सभा में भारी संख्या में जुझारू दलित कार्यकर्ता ही शामिल हुए थे. इस बात का सबूत जनरल डायर के वे आंकड़े हैं जो यह दर्शाते हैं कि उस कांड में मारे गए 200 लोगों में से 185 दलित समाज के लोग थे. दिल को दहला देने वाले इस कांड में अंग्रेजी फौज की गोलियों के शिकार हुए दलितों में सभा संयोजक नत्थू धोबी, बुद्धराम चूहड़ा, मंगल मोची, दुलिया राम धोबी आदि प्रमुख अमर शहीद रहे हैं. लेकिन जलियावाला बाग की चर्चा करते हुए इतिहासकार और लेखक इस तथ्य से आंखे मूंदे रहते हैं.
क्या इस नत्थु धोबी को इतिहास के साथ न्याय दिला पायेगे ।
                     किशन लाल ( banti Rajak)



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नत्थु धोबी


दुलिया धोबी(क्रांतिकारी)

रजक गॊरव:-)                 🇮󾓭🇮󾓭अमर शहिद दुलिया धोबी को भावभिनी श्रद्धांजली … !🇮󾓭🇮󾓭
                                       

अमृतसर का जलियाँवाला बाग़ कांड स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास का एक ऐसा अध्याय है जो आज भी अंग्रेजी हुकूमत के प्रति नफरत पैदा कर देता है ।

लेकिन इस काण्ड को भी इतिहासकारों ने अपने तरीके से ही लिखा और पूरे हक़ीक़त को दरकिनार कर दिया । 13 अप्रैल 1919 को जलियाँवाला बाग़ कांड में लगभग 2500 लोगों की भीड़ पर जनरल डायर ने गोलियाँ चलवाई थी , जिसमे 1500 लोग शहीद हुए थे ।

                 इस हत्याकांड में जो लोग शहीद हुए थे उनमे अधिकतर दलित और शोषित समाज के ही थे । अपने लोगों पर गोलियां बरसता देख ॥   
                                               🇮󾓭13 अप्रेल 1919 के प्रथम शहीद दुलिया धोबी रहे🇮󾓭
दुलिया धोबी का जन्म 1966 मे पीरु धोबी के घर हुआ था ॥   सभा के चारो ऒर सैनिक का घेरा था, इसी मे मोका पा कर     दुलिया धोबी ने एक सैनिक की गन छीन ली थी ,ऒर अंग्रेजो को ललकारते हुए कहा था  🇮󾓭हम आजादी को प्राप्त करने के लिये हंसते हुए प्रण न्योछावर कर देंगे । प्ररन्तु भारत माँ को आजाद करके रहेगे ।🇮󾓭 लेकिन तभी जनरल डायर ने क्रुद्ध हो कर दुलिया के सीने में कई गोलियां दाग दी और वह शहीद हो गया जो लोग इस गोलीकांड में मारे गए थे उनके परिवारवालों या आश्रितों को आजादी के पहले या बाद में चपरासी की नौकरी भी नहीं मिली ।

जलियाँवाला काण्ड का बदला ऊधम सिंह जो दलित चर्मकार (चमार)
समाज का नौजवान था, उसने लंदन जाकर माइकल ओ डायर
को गोलियों से भूनकर लिया था ।

क्या इस आजादि को दिलाने वाले अमर शहीद को  भारत रत्न दिला पायेगे🇮󾓭🇮󾓭🇮󾓭 k k lal (banti rajak )



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रामचन्द्र धोबी(क्रांतिकारी)

रजक गॊरव.🇮󾓭🇮󾓭🇮󾓭 रामचन्द्र धोबी ( विद्धार्थी ) आजादी के दिवाने कि गॊरव गाथ ।🇮󾓭🇮󾓭🇮󾓭
जब हम बैठे थे घरों में, वे झेल रहे थे गोली, जो शहीद हुए हैं, उनकी जरा याद करो कुर्बानी। कुछ ऐसा ही दृश्य था 14 अगस्त 1942 के दिन था ।
महात्मा गांधी ने जब अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा दिया था तो इसकी गूंज रामपुर कारखाना के ग्रामसभा सहोदर पट्टी व नौतन हथियागढ़ तक पहुंच गई। इसी गांव के एक गरीब परिवार में जन्मे  नौतन हथियागढ़ निवासी रामचंद्र धोबी भी गांधीजी के इस आंदोलन में कूद पड़े। जब उसका ऊर्म 12 वर्ष कक्षा 6 का विद्धार्थी था । पिता का नाम बाबूलाल धोबी था । वो गांव से पैदल चलकर तरकुलवा के बसंतपुर पहुंचे। यहां से कुछ अध्यापक तथा छात्र देवरिया के लिए कूच किए। शहर के लच्छीराम पोखरा पर पहुंच हुजूम जुलूस की शक्ल में बदल गया। अंग्रेजों के खिलाफ गगनभेदी नारे लगाते हुए भीड़ कचहरी पहुंची। यहां मंत्रणा होने लगी कि यूनियन जैक कौन उतारेगा। रामचंद्र धोबी यह शब्द सुनते ही जिम्मेदारी लेने की जिद करने लगे। आखिरकार सभी ने मिलकर पिरामिड बनाया और रामचंद्र को ऊपर  चढ़ाकर यूनियन जैक को फड़वा दिया तथा तिरंगा फहरा कर ज्यों ही भारत माता की जयकार की आवाज लगाई तो अंग्रेज अधिकारी उमराव सिंह ने गोली चला दी जिसमें रामचंद्र धोबी को कई गोलिया लगी ऒर वन्देमातरम् कहते कहते रामलीला मैदान मे शहीद हो गए। 🇮󾓭🇮󾓭🇮󾓭11वर्ष बाद 1958 मे उत्तर प्रदेश सरकार के तत्कालिन शिक्षा, ग्रह,ऒर सूचना मंत्री द्वारा नगर पालिका ने रामलीला मैदान मे स्म्रति-स्तंभ का उद्धाटन किया ।🇮󾓭🇮󾓭🇮󾓭🇮󾓭🇮󾓭🇮󾓭         k k lal (बंटि रजक)🇮󾓭🇮󾓭🇮󾓭🇮󾓭



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